2803. *पूर्णिका*
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2803. पूर्णिका
बेहतर बनती जिंदगी
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बेहतर बनती जिंदगी।
मंजिलें बनती जिंदगी।।
राह भी प्यारी-सी यहाँ ।
खुशनुमा बनती जिंदगी।।
सोच ना हो यूं जहर सा।
नेकिया मीठी जिंदगी।।
फूल भी खिलते महकते।
बस बने बगियां जिंदगी।।
दे खुशी खेदू प्यार से ।
देख लो सागर जिंदगी।।
……✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
08-12-2023शुक्रवार