[28/03, 17:02] Dr.Rambali Mishra: *पाप का घड़ा फूटता है (दोह
[28/03, 17:02] Dr.Rambali Mishra: पाप का घड़ा फूटता है (दोहे)
आगे पीछे सोचता, कभी नहीं अपराध।
राजनीति के संग से, करे कुकृत्य अगाध।।
गुर्गे अपना पालता, करता तांडव नृत्य।
धरे भयानक वेश वह, करे घिनौना कृत्य।।
नहिं समाज का भय उसे, खौफजदा इंसान।
बाहुबली बन घूमता, नित निष्ठुर हैवान।।
खूनी पंजा मारता, लूटे परसंपत्ति।
भयाक्रांत समुदाय मन, आते देख विपत्ति।।
बड़े बड़े अधिकार का , उड़ जाता है होश।
देख क्रूर जल्लाद को, हो जाते बेहोश।।
मद में रहता चूर वह, तथाकथित अय्यास।
दयारहित दानव दनुज, दैत्य प्रेत सहवास।।
घड़ा पाप का जब भरे, होता चकनाचूर।
बाहुबली भी एक दिन, हो जाता काफूर ।।
न्याय कभी मरता नहीं, समय समय का फेर।
विजय सत्य की हो सदा, अन्यायी हो ढेर।।
सदा सत्य का आचरण, जो करता बिंदास।
वही सुखी इस लोक में, जैसे रवि रविदास।।
तुलसीदास बनो सदा, बनना दास कबीर।
कवि बन कर कविता लिखो, चमको जैसे हीर।।
मानव बनना सीख लो, कर सबका उद्धार।
सेवा में ही मन लगे, यही शिष्ट सत्कार।।
कभी उपद्रव मत करो, ऐ प्यारे इंसान।
आये हो संसार में, करने कर्म महान।।
सत्व काम का फल सुखद, यही सनातन धर्म।
सुनता आया अद्यतन, जान कर्म का मर्म।।
पाप भोग को त्याग कर, सुन परहित की बात।
सुंदर शुभमय सोच में , डूब सदा दिन रात।।
गंदी राहें छोड़ कर, पकड़ो पावन पंथ।
जीवन जीना इस तरह, बनो स्वयं प्रिय ग्रंथ।।
रामचरितमानस बनो, बन कर उत्तम राम।
श्रीमद्भगवद्गीत बन, हो कर प्रिय घनश्याम।।
उत्तम मोहक लोक का, करते रह निर्माण।
इसी भावना भूमि में, हो अंतिम निर्वाण।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[29/03, 17:29] Dr.Rambali Mishra: शराब
शराब पेय है नहीं अपेय रोग रूप है।
शरीर को जला रही प्रचण्ड ग्रीष्म धूप है।
गिरा रही मनुष्य को अनिष्ट अंध कूप है।
नशा किया करे सदा प्रमादग्रस्त स्तूप है।
पियक्कड़ी बनो नहीं शराब सभ्य है नहीं।
पवित्र भाव के लिये मदार भव्य है नहीं।
न आदती बनो कभी कुपंथ को गहो नहीं।
शरीर मित्र रूप है इसे संवारना सही।
शराब बुद्धि मारती अचेतना जगे सदा।
विचारवान सद्विवेक भावना भगे सदा।
नशा बिगड़ता फिज़ा नहीं दिखें सगे कदा।
कुरूप दृश्यमान हो विकार सा लगे सदा।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[31/03, 16:11] Dr.Rambali Mishra: अंधेरी रात
अधिक अंधेरी रात है, जाना बहुत सुदूर।
मन की इच्छा यदि प्रबल , कुछ भी नहीं अधूर।।
जहां अंधेरी रात है, वहीं उजाला लोक।
करो प्रतीक्षा सूर्य की, क्रमशः भागे शोक।।
भयाक्रांत होना नहीं, सुखद अंधेरी रात।
लिए प्रीति को साथ में, बने रहो अहिवात।।
अंधेरा से प्रेम कर, यह जीवन का मर्म।
घबड़ाना बेकार है, करते रह सत्कर्म।।
अंधेरा शुरुआत है, लाता दिवस महान।
अंधेरे को चूम नित, कर इसका सम्मान।।
सदा प्रेम से काटना, प्रिय अंधेरी रात।
यह भी देती मौज है, इसकी भी औकात।।
सून सून चारोंतरफ, सन्नाटा चहुंओर।
घूम अकेला पकड़ कर, अंधकार की डोर।।
अंधकार यह कह रहा, घबड़ाना मत मीत।
यही रात रानी सहज, यह जीवन का गीत।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/04, 14:42] Dr.Rambali Mishra: सरहद के पार (स्वर्णमुखी छंद.. सोनेट)
सरहद के रक्षक को देखो,
अपना सब कुछ अर्पण करता,
कभी न आत्म समर्पण करता,
वीर बहादुर योद्धा देखो।
सीमा के उस पार दृष्टि है,
दुश्मन की गतिविधि पर अंकुश,
शूर धैर्यधारी जिमि लवकुश,
वैरी के प्रति नित कुदृष्टि है।
पार्थ बना वह लड़ता रहता,
सावधान वह हरदम दिखता,
युद्ध कहानी गढ़ता लिखता,
सरहद के भी पार दमकता।
सरहद का स्वामी गंभीरा।
तेज पुंज सैनिक शिव वीरा।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/04, 06:55] Dr.Rambali Mishra: भक्ति और माया (दोहे)
भक्ति समर्पण भाव है, सदा ईश के संग।
माया भौतिक दृष्टि है, सदा बदलती रंग।।
भक्ति जिसे मिलती वही, बन जाता निष्काम।
माया के बाजार में, सतत वासना काम।।
भक्ति बहुत दुर्लभ कठिन, यह अमृत अनमोल।
माया दैहिक मानसिक, कामी लौकिक बोल।।
भक्ति मिली तो सब मिला, मन होता संतृप्त।
मिथ्या माया जाल में, मन हर समय अतृप्त।।
खुश होते भगवान जब, मिल जाती है भक्ति।
माया से मन छूटता, नहीं लोक आसक्ति।।
भक्ति मिली हनुमान को, राघव सदा सहाय।
बने राममय रातदिन, सारा जगत विहाय।।
माया भक्ति उभय दिखें, नारी जाति समाज।
भक्ति ब्रह्म के लोक में, माया भोग स्वराज।।
वाम अंग माया दिखे, भक्ति दाहिना अंग।
महा पुरुष शिव सिद्ध को, लगे भक्ति शुभ रंग।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/04, 16:19] Dr.Rambali Mishra: प्रीति और भक्ति (दोहे)
बिना ज्ञान अहसास कब, नहीं होय आभास।
जानो असली बात को, होना नहीं उदास।।
जब होता अहसास है, तब होती है प्रीति।
मानव से मानव जुड़े, यही संगठन नीति।।
होता जब सद्ज्ञान है, तब सात्विक अनुराग।
स्वार्थमुक्त शिव तत्व में, सत्य समर्पण राग।।
जाने बिना कभी नही, होती चिर आसक्ति।
बिन पावन आसक्ति के, कभी न मिलती भक्ति।।
सबसे पहले अनुभवी, ज्ञान रत्न को खोज।
ज्ञान हुआ तो खिल उठा, हार्दिक प्रीति सरोज।।
बिना प्रीति के भक्ति का, मिलना दुर्लभ जान।
भक्ति सिंधु में मधुर रस, की सर्वोत्तम खान।।
प्रीति करो दिल खोल कर, यही सृष्टि का सार।
अंतिम सत्ता से मिलो, जिसका यह संसार।।
अंतिम सत्ता अति सहज, पावन निर्मल छांव।
सभी जगह पर है यही, बन कर सबका गांव।।
प्रीति भक्ति के मूल में, है सत्ता का ज्ञान।
सत्ता के सत्संग से,मिटे सकल अज्ञान।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/04, 09:57] Dr.Rambali Mishra: रिश्ता (अमृत ध्वनि छंद)
मात्रा 24
रिश्ता मोहक था कभी, दिल का सुखद बहार।
भौतिकवादी भाव से, अब खाता यह मार।।
बहुत मनोहर, दिव्य धरोहर, अतिशय सुंदर।
मौसम भौतिक, बहुधा लौकिक, खार समंदर।।
रिश्ता हुआ बनावटी, भीतर बाहर भिन्न।
गर्म जोश अब यह नहीं, बना कलेवर छिन्न।।
होय प्रदर्शन, विकृत नर्तन, मन में माया।
भाव बदलते, झूठ मचलते, दूषित काया।।
[03/04, 15:01] Dr.Rambali Mishra: रिश्ता (अमृत ध्वनि छंद)
मात्रा 24
रिश्ता मोहक था कभी, दिल का सुखद बहार।
भौतिकवादी भाव से, अब खाता यह मार।।
बहुत मनोहर, दिव्य धरोहर, अतिशय सुंदर।
मौसम भौतिक, बहुधा लौकिक, खार समंदर।।
रिश्ता हुआ बनावटी, भीतर बाहर भिन्न।
गर्म जोश अब यह नहीं, बना कलेवर छिन्न।।
होय प्रदर्शन, विकृत नर्तन, मन में माया।
भाव बदलते, झूठ मचलते, दूषित काया।।
रिश्ता उत्तम जान लो, जिससे धन का लाभ।
रिश्ता लायक वह नहीं, जिसमें नहिं कुछ आभा।।
लाभ मिले तो, अच्छा जानो, प्रिय पहचानो।
जिस रिश्ते से, हानि पहुंचती, दूरी ठानो।।
यही चल रहा आज है, सब पैसे का खेल।
जिसका जेबा गर्म है, उस रिश्ते से मेल।।
आर्थिक युग है, यह कलियुग है, रिश्ता बदला।
स्वार्थ परायण, धन पारायण, मन अति चपला।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/04, 19:34] Dr.Rambali Mishra: धन्य भारत वर्ष पावन
मापनी 2122 2122,2122 212
मात्रा 14/12
धन्य भारत वर्ष अमृत, धन्य भारत भावना।
धन्य माटी धन्य संस्कृति, धन्य मोहक कामना।।
धर्म रक्षक स्नेह शिक्षक, मृदु मनोहर याचना।
विश्व हित साधक सदा से, भाव पोषक आनना।।
प्रेम सात्विक योगक्षेमी, पारदर्शी मन तना।
पावनी सद्भावना हिय, आत्मदर्शी सांत्वना।।
दानदाता अन्नदाता, यज्ञ याज्ञिक कामदा।
ज्ञानदाता ब्रह्मज्ञाता, मोक्षदायी शारदा।।
सिद्ध बौद्धिक सौम्य मानव, सुष्ठ शिष्टाचार है।
शीघ्र अति संतुष्ट मधुरिम, नम्र वंदन प्यार है।।
आत्मवादी विश्वव्यापी, त्यागपूरक देश है।
मानसिक संतोष धन का, दे रहा संदेश है।।
तोड़ता यह मन नहीं है, जोड़ता यह सर्जना।
काव्य रचता प्रीति रस का, मातृ की ही अर्चना।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/04, 10:27] Dr.Rambali Mishra: उम्मीद
मापनी 221 221 221 22
उम्मीद से जिंदगी है संवरती।
उम्मीद से मानसिकता सुधरती।
प्यारा लगे यह जगत प्रिय सुहाना।
उम्मीद में जिंदगी यह चमकती।
उम्मीद पर जिंदगी यह टिकी है।
उम्मीद से जिंदगी यह पगी है।
आशा न छोड़ो बढ़ो वीर बन कर।
उम्मीद की जिंदगी यह सगी है।
उम्मीद त्यागो नहीं भोलभाले।
उम्मीद बाजा बजा ढोलवाले।
नारा लगाओ सहज आसरा का।
उम्मीद के जिंदगी है हवाले।
स्वीकार जीवन सदा प्रेम पी कर।
मस्ती करो नित्य उम्मीद ले कर।
चिंता करो मत सदा बच निकलना।
ताना बुनो आस के साथ जी कर।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/04, 17:07] Dr.Rambali Mishra: आचारसंहिता (अमृत ध्वनि छंद)
मात्रा भार 24
बिना नियम के हो नहीं, सकता कोई काम।
नियम शून्यता है जहां, सारा काम तमाम।।
नियम नहीं यदि, नहीं नियंत्रण, मनमानापन।
नहीं व्यवस्था, गलत अवस्था, बचकानापन।।
जहां नियम कानून है, वहां व्यवस्था स्वस्थ।
उल्लंघन जब होय तब, काम दिखे अस्वस्थ।।
नियम बने जब, काम चले तब, नियमित कर्मी।
नियम तोड़ना, बहुत बुरा है, मनुज अधर्मी।।
कार्य प्रणाली के लिए, नियम सदा अनिवार्य।
विधिवत उत्तम कार्य ही, जन जन को स्वीकार्य।।
विधि विधान से, संविधान से, आसानी से।
जीवन चलता, नहिं मोहक है, मनमानी से।।
संस्था चलती नियम से, मत तोड़ो कानून।
नियमों का पालन करो, मन में होय जुनून।।
हो संरक्षण, सहज समर्पण, जीवन सुखमय।
बन सामाजिक, नहिं अपराधी, गमके किसलय।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/04, 16:00] Dr.Rambali Mishra: तुझसा कोई मीत नहीं है।( अमृत ध्वनि छंद)
मात्रा भार 24
तुझ्सा कोई मीत नहिं, तुझसा नहिं है यार।
तू ही रहते हृदय में, हे प्रियवर दिलदार।।
तेरे जैसा, इस जगती में, एक तुम्हीं हो।
बड़े भाग्य से, ईश कृपा से, मिले तुम्हीं हो।।
जन्म जन्म के पुण्य से, मिलते मोहक मीत।
गाते बैठे हृदय में, रसमय मधुरिम गीत।।
अति मनभावन, उत्तम पावन, प्यार मिला है।
दिल में रहता, मधु मुस्कानों, से चपला है।।
चंचल नयनों से करे, दिल पर मोहक वार।
ऐसे प्रेमिल मित्र का, होय सदा सत्कार।।
जिस्म विलक्षण, रोम रोम में, शुभमय लक्षण।
समतल मस्तक, अधर लालिमा, प्रिय आकर्षण।।
मंत्र मुग्ध मन हो सदा, देख तुम्हारा अंग।
सभी अंग में है लगा, शुभ मेंहदी का रंग।।
नित आकर्षित, अतिशय हर्षित, तुम करते हो।
कदम कदम पर, प्रीति बांटते, तुम चलते हो।।
विरह वियोग कभी नहीं, सह पाते हो मीत।
स्मृतियों के आलोक में, तुम्हीं मधुर संगीत।।
दूर नहीं हो, सदा निकट हो, हे प्रियदर्शी।
राधा कृष्णा, की संस्कृति के, तुम समदर्शी।।
दुनिया तुझ पर हो फिदा, भले किंतु तुम नेक।
अपने भावुक मीत को, देते हरदम टेक।।
रीझे दुनिया, सीखे तुझसे, ऐ मनमीत।
तुझको पाता, वही लोक में, जो गर्मी में शीत।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/04, 15:47] Dr.Rambali Mishra: भरोसा (सरसी छंद)
मात्रा भार 16/11
करो भरोसा अपने ऊपर, रखना दृढ़ विश्वास।
चलो पराया छोड़ आसरा, कभी न बनना दास।।
मजबूती से पकड़ स्वयं को, कर सशक्त अहसास।
लुंज पुंज रहना मत प्यारे, दिखना नहीं उदास।।
अपने बल को जो पहचाने, सबसे आगे होय।
करता अपना काम स्वयं वह, पराश्रयी मन खोय।।
स्वाभिमान मन मूल्यवान है, रखना इसे संभाल।
आगे आगे जब यह चलता, करता सदा कमाल।।
इस समाज में खुद स्थापित जो, उसका होता नाम।
नहीं आलसी रंग जमाता, वह सौदा बेदाम।।
आत्म बड़ा है इसको जानो, इसे सदा पहचान।
करो भरोसा केवल इसका, करो इसी का गान।।
जिसने खुद पर किया भरोसा, वही गगन के पास।
साधारण वह नहिं रह जाता, जगह उसी की खास।।
रह जाता है नहीं इकाई, स्वयं व्यवस्था लोक।
नवाचार का पाठ पढ़ाता, जिमि गुरुवर आलोक।।
जिसे भरोसा खुद पर रहता, वही भरोसेमंद।
जिसने खोया खुद विवेक को, वह जड़वत मतिमंद।। साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/04, 16:46] Dr.Rambali Mishra: वीर चक्र (विधाता छंद)
मापनी 1222 1222,1222 1222
चला जाता बना राही, विवादों से नहीं घिरता।
किया करता शुभद चिंतन, फकीरी मन लिए फिरता।
अकेलापन सहज लगता, सदा वैराग मन में है।
सदा बेफिक्र रहता है, कपट से मुक्त नित रहता।
जिसे है राष्ट्र पावन की, सदा चिंता वही वीरा।
सुदर्शन चक्र ले कर में, चला करता बना धीरा।
सभी प्राणी जिसे प्यारा, वही प्रिय भाव वीरों का।
वही है विश्व का मोहन, मुरारी बांसुरी हीरा।
दुराग्रह त्याग कर रहता, खड़ा सीमा सुरक्षक है।
नहीं अन्याय सह पाता, कभी भी विश्व रक्षक है।
जिसे अन्याय प्रिय लगता, वही कामी निशाचर है।
वहीं है चक्र वीरों का, जहां दिखता सुशिक्षक है।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/04, 16:34] Dr.Rambali Mishra: इज़हार ए इश्क
(मुक्तक)
मापनी 221 221 221 22
इज़हार ए इश्क करना जरूरी।
इच्छा जगी तो बता रख न दूरी।
हिम्मत जुटा कर रखो बात अपनी।
जाने मनोरथ कभी होय पूरी।
मतलब बताना बुरा तो नहीं है।
उसको छिपाना भला भी नहीं है।
घुट घुट न जीना दिखा राज अपना।
प्रेमिल हृदय द्वार जाना सही है।
इज़हार जैसे करो किंतु करना।
रोको नहीं मन सहज बात रखना।
लागे लगन तो न मुश्किल कभी कुछ।
कर दो निछावर स्वयं ही बरसना।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/04, 17:32] Dr.Rambali Mishra: प्रेम राग (मनहरण घनाक्षारी)
31 वर्ण
प्रेम राग पत्रिका को, पीत रंग लेखनी से, लिख सदा दिलेर हो, भाग्य आजमाइए।
भाव मादकीय होय, सप्तरंगनीय होय, रहे सदैव रागिनी, मध्य द्वार जाइए।
मंगलीय कामना हो, दर्शनीय याचना हो, प्रेम रश्मि खोज खोज, भावना जगाइए।
लेख में सुलेख होय, शोभानी सुरेख होय, वंदनीय शब्द घोल, प्रीति को उगाइए।
शब्द भाव साथ साथ, हो उमंग चार हाथ, हो विभोर आप मन, प्रेम गीत गाइए।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/04, 10:00] Dr.Rambali Mishra: महक जिंदगी की (मुक्तक)
महके जीवन उपवन उसका, जिसने श्रम को साध लिया है।
वही गमकता है जगती में, जिसने मन को बांध लिया है।
चमकीला व्यवहार उसी का, कभी नहीं जो आलस करता।
वही सुगंधित बनकर फैले, जिसने सच आबाद किया है।
महक बिखेरा जिसने उर का, वही कृष्ण कहलाता रहता।
दिव्य मधुर भावों से सिंचित, पावन वायु बना वह बहता।
जिसके भीतर प्रीति लहर है, पग चूमे जो मानवता का।
वही इत्र है इस धरती पर, नित मोहक बन सहज महकता।
निर्विकल्प यदि सत शिव सुन्दर, यही स्वर्ग की सीढ़ी रचते।
दृढ़ संकल्प अगर हों मन में, सफल मनोरथ सदा चहकते।
पूजनीय वह यज्ञ होम सम, जिससे प्रिय पावन धूम्र बहे।
वंदनीय परमारथ जीवन, जिसके उत्तम अर्थ गमकते।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/04, 16:39] Dr.Rambali Mishra: प्यार (दोहा मुक्तक)
गहरे दिल में है बसा, मधुरिम अमृत प्यार।
परम अनंत असीम यह, अति कोमल सुकुमार।।
प्रिय भावुक सज्जन सरल, सौम्य सुघर अति शिष्ट।
सकल सृष्टि पर चाहता, यह अपना अधिकार।।
प्यार समंदर सा बहे, लहरों में तूफान।
पावन चिंतन वचन से, रखता सब पर ध्यान।।
नफरत से अति दूर यह, सबसे मिलता दौड़।
गुण ग्राहक साधक अमित, आसमान की शान।।
मधु शोभा श्रृंगार यह, दिल ही इसका गांव।
चूम रहा सौंदर्य को, देता शीतल छांव।।
देख देख कर मुग्ध हो, जाता सबके गेह ।
चाह रहा पहचान यह, छू कर सबके पांव।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/04, 18:36] Dr.Rambali Mishra: तोटक छंद
मापनी 112 112 112 112
सजनी रहना मन के अंगना।
चमके बिंदिया दमके कंगना।
नित प्यार जगे चहके मनवा।
कहना सुनना मधुरा गनवा।
हंसते रहना हर बात करो।
पकड़ो बहियां अधरान धरो।
मत छोड़ कभी रस भाव भरो।
दरिया दिल से सब पीर हरो।
सखियां बन के तुम खेल करो।
पलना पर पौड़त मेल करो।
रखना मधु भाव सदा मन में।
प्रिय होय उमंग सदा तन में।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
Dr.Rambali Mishra: प्रीति धारा (तोटक छंद)
मापनी 112 112 112 112
नहिं भाव घृणा रखता उर में।
मधु धार बना बहता पुर में।
नहिं कुंठित वृत्ति रहे मन में।
सबके प्रति आदर हो तन में।
सत चित्त जगे मन रोग भगे।
दिल में जग के प्रति प्रेम पगे।
रसना पर प्रेमिल धार बहे।
सबको अपनाकर भार सहे।
शुभ सोच दिखे उपजे हिय से।
अति निर्मल स्वच्छ गिरा प्रिय से।
मनभावन पावन हो बचना।
मन प्रीति धरा जिमि हो रचना।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
Dr.Rambali Mishra: इज्जत (दोहा मुक्तक)
जो सबकी इज्जत करे, वह है इज्जतदार।
जो सबसे नफरत करे, उसको नित दुत्कार।।
इज्जत से इज्जत मिले, मन में हो प्रिय भाव।
इज्जतदारों का सदा, हो हार्दिक सत्कार।।
इज्जत करने से सहज, बढ़ता रहता प्यार।
सबके प्रति सम्मान से, होता आत्मोद्धार।।
इज्जत पाता है वही, जिसका हृदय विशाल।
सबके प्रति सद्भाव ही, उत्तम शिष्टाचार।।
सच्चा व्यापक अति मधुर, मोहनीय अवतार।
निर्मल मानव हृदय में, है इज्जत की धार।।
सबके दिल को जीतता, रहता पावन मूल्य।
सबके दिल में नित दिखे, अनुपम इज्जतकार।।
इज्जत को पहचानना, ही सच्चा व्यवहार।
सीने में अति स्नेह ही, जीवन का व्यापार।
उर में यदि परमार्थ है, तो इज्जत है संग।
मधु भावों के मेल से, बनता प्रिय संसार।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
Dr.Rambali Mishra: अमृत (भुजंगप्रयात मुक्तक)
मापनी 122 122 122 122
बनोगे विषैला बुरा हश्र होगा।
कहोगे कसैला सदा प्रश्न होगा।
न सोचो सदा वक्त ऐसा रहेगा।
सदा बोल मोहो यही जश्न होगा।
सदा सभ्य भाषा सदा प्रेम बोली।
बनो प्रेम पंछी उड़ो व्योम टोली।
यही आदि से अंत मौका सुहाना।
भरो सब्र से प्रीति से नित्य झोली।
कभी भी बुराई न अच्छी रहेगी।
भलाई करोगे मलाई मिलेगी।
सबेरा सदा भावना में उगेगा।
सहोगे तपोगे प्रशंसा खिलेगी।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[15/04, 11:50] Dr.Rambali Mishra: श्याम रंग
दिखते जब श्याम सलोना हैं।
रंगीन सुहाना सोना हैं।।
मुरली लेकर अधरान धरें।
मोहित कर सबके कष्ट हरें।।
श्याम रंग के शिव रामा हैं।
प्रेम सुप्रीति स्नेह नामा हैं।।
इसी रंग में देव विराजत।
देख रूप यह युवती नाचत।।
श्यामल अतिशय मोहक सूरत।
गुण प्रवीण यह उत्तम मूरत।।
विष्णु रूप यह दिव्य रंग है।
पुरुषार्थी बैकुंठ अंग है।।
बादल श्याम श्याम कोयल है।
निर्मल जलप्रद प्रेम महल है।।
श्याम रंग रंगीन सुधांशू।
चंचल चितवन सहज प्रियांशू।।
काला नीला श्याम रंग है।
मुस्काती प्रेमिला संग है।।
श्याम वर्ण चमकता चेहरा।
मस्तक के ऊपर है शहरा।।
धन्य श्याम तुम मस्त नगीना।
तुझ पर मोहित सकल हसीना।।
गौर गाल पर तुम कातिल हो।
कितना मादक तुम प्रिय तिल हो।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।