2767. *पूर्णिका*
2767. पूर्णिका
प्रेम की भाषा पढ़ जाते
2122 22 22
प्रेम की भाषा पढ़ जाते।
सजन परिभाषा गढ़ जाते ।।
मेहनत से मंजिल मिलती।
यूं शिखर पर हम चढ़ जाते।।
साथ वक्त भी देता हरदम।
कदम आगे ही बढ़ जाते ।।
नव कहानी रचते रहते।
सोच दुनिया बस कढ़ जाते ।।
देख तरक्की करते खेदू ।
दोष कोई भी मढ़ जाते।।
………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
26-11-2023रविवार