धुप सी शक्ल में वो बारिश की बुंदें
यूँ तो दुनिया में मेले बहुत हैं।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जंग तो दिमाग से जीती जा सकती है......
“दूल्हे की परीक्षा – मिथिला दर्शन” (संस्मरण -1974)
सतयुग, द्वापर, त्रेतायुग को-श्रेष्ठ हैं सब बतलाते
कुछ पन्ने मेरी जिंदगी के...। पेज न.2000
*अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर किला परिसर में योग कार्यक्रम*
यूँ झूटी कहावत का क्या फ़ायदा
उनसे कहना अभी मौत से डरा नहीं हूं मैं
*** पुद्दुचेरी की सागर लहरें...! ***
मीडिया का वैश्विक परिदृश्य
कहते हैं सब प्रेम में, पक्का होता आन।
माता, महात्मा, परमात्मा...
दिगपाल छंद{मृदुगति छंद ),एवं दिग्वधू छंद