2741. *पूर्णिका*
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2741. पूर्णिका
यूं चल कर आती है मंजिल
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यूं चल कर आती है मंजिल।
जो करना चाहते हैं हासिल।।
दुनिया का है रंग निराला ।
बनने वाले बनते काबिल ।।
तकलीफ यहाँ देती खुशियाँ ।
हम फूलों में होते शामिल ।।
हार नहीं जीत यहाँ हरदम ।
हर बातों का करते तामिल ।।
यारों का यार बने खेदू।
करते अब ना ये कत्ल कातिल ।।
……….✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
20-11-2023सोमवार