4 खुद को काँच कहने लगा ...
शिव का सरासन तोड़ रक्षक हैं बने श्रित मान की।
छोड़कर जाने वाले क्या जाने,
खुश होना नियति ने छीन लिया,,
हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता
मुस्किले, तकलीफे, परेशानियां कुछ और थी
ध्यान-रूप स्वरुप में जिनके, चिंतन चलता निरंतर;
राम कृष्ण हरि
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
दौड़ना शुरू करोगे तो कुछ मिल जायेगा, ठहर जाओगे तो मिलाने वाल
मुस्तक़िल बेमिसाल हुआ करती हैं।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
आभासी दुनिया में सबके बारे में इक आभास है,
तू गीत ग़ज़ल उन्वान प्रिय।
देश से दौलत व शोहरत देश से हर शान है।
- निश्चय करना निश्चित है -