ज़िंदगी हो जिसमें, वो सुब्ह नज़र में रखना ,
#ਸੱਚ ਕੱਚ ਵਰਗਾ
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
इस राष्ट्र की तस्वीर, ऐसी हम बनायें
तुम्हारा यूँ और तुम्हारी बस
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
तेवरी का फार्म ग़ज़ल से बिलकुल अलग +श्रीराम मीणा
माँ आजा ना - आजा ना आंगन मेरी
वो दौर था ज़माना जब नज़र किरदार पर रखता था।
महकती नहीं आजकल गुलाबों की कालिया
सुबह की चाय की तलब हो तुम।
घूंटती नारी काल पर भारी ?
सहचार्य संभूत रस = किसी के साथ रहते रहते आपको उनसे प्रेम हो
युद्ध नहीं अब शांति चाहिए
Some people survive and talk about it.
“समर्पित फेसबूक मित्रों को”
मैं आग नही फिर भी चिंगारी का आगाज हूं,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
तू अपने दिल का गुबार कहता है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)