कभी अपनेे दर्दो-ग़म, कभी उनके दर्दो-ग़म-
यह पतन का दौर है । सामान्य सी बातें भी क्रांतिकारी लगती है ।
वो लम्हे जैसे एक हज़ार साल की रवानी थी
■ मिथक के विरुद्ध मेरी सोच :-
जो हमारा है वो प्यारा है।
जो बुजुर्ग कभी दरख्त सा साया हुआ करते थे
मेहनत करने में जितना कष्ट होता है...
है हार तुम्ही से जीत मेरी,
*पाई जग में आयु है, सबने सौ-सौ वर्ष (कुंडलिया)*
सुंदरता अपने ढंग से सभी में होती है साहब
वो बस सपने दिखाए जा रहे हैं।
गंगा सेवा के दस दिवस (प्रथम दिवस)
आवारग़ी भी ज़रूरी है ज़िंदगी बसर करने को,