न जाने कहाँ फिर से, उनसे मुलाकात हो जाये
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मैंने देखा है ये सब होते हुए,
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
जिस भी समाज में भीष्म को निशस्त्र करने के लिए शकुनियों का प्
इस दरिया के पानी में जब मिला,
आचार्य - डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
खुश होगा आंधकार भी एक दिन,
बहुत नफा हुआ उसके जाने से मेरा।
जब कैमरे काले हुआ करते थे तो लोगो के हृदय पवित्र हुआ करते थे
किसी को जिंदगी लिखने में स्याही ना लगी
अमर काव्य
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम