बुंदेली दोहा-बखेड़ा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
मसला ये नहीं कि कोई कविता लिखूं ,
कहें किसे क्या आजकल, सब मर्जी के मीत ।
दे दो हमें मोदी जी(ओपीएस)
समय-सारणी की इतनी पाबंद है तूं
राज जिन बातों में था उनका राज ही रहने दिया
नफरतों के जहां में मोहब्बत के फूल उगाकर तो देखो
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
देखा नहीं है कभी तेरे हुस्न का हसीं ख़्वाब,
जिंदगी रूठ गयी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
एसी कहाँ किस्मत कि नसीबों में शिफा हो,
*बारात में पगड़ी बॅंधवाने का आनंद*
ग़म कड़वे पर हैं दवा, पीकर करो इलाज़।