युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
नगीने कीमती भी आंसुओं जैसे बिखर जाते ,
यहां से वहां फिज़ाओं मे वही अक्स फैले हुए है,
उसने मुझे लौट कर आने को कहा था,
वक्त की नज़ाकत और सामने वाले की शराफ़त,
तेरे पास आए माँ तेरे पास आए
आप शिक्षकों को जिस तरह से अनुशासन सिखा और प्रचारित कर रहें ह
*वफ़ा मिलती नहीं जग में भलाई की*
24/251. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जा रहे हो तुम अपने धाम गणपति
शब्द सुनता हूं मगर मन को कोई भाता नहीं है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
दिन - रात मेहनत तो हम करते हैं
ओस
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
दर्द देह व्यापार का
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
*राजकली देवी: बड़ी बहू बड़े भाग्य*