जख्म भरता है इसी बहाने से
बाण मां रा दोहा
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
जब कभी प्यार की वकालत होगी
जन्नत और जहन्नुम की कौन फिक्र करता है
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कृष्ण कुंवर ने लिया अवतरण
EVERYTHING HAPPENS AS IT SHOULD
छोड़ दिया ज़माने को जिस मय के वास्ते
जीवन बहुत कठिन है लेकिन तुमको जीना होगा ,
'निशात' बाग का सेव (लघुकथा)
काश तुम कभी जोर से गले लगा कर कहो
चलते हैं क्या - कुछ सोचकर...
पल्लव से फूल जुड़ा हो जैसे...
मां लक्ष्मी कभी भी जुआरिओ के साथ नही बल्कि जोहरीओ के साथ रहत