स्वदेशी कुंडल ( राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' )
We Would Be Connected Actually
झूठी आशा बँधाने से क्या फायदा
मैं गर्दिशे अय्याम देखता हूं।
अब तो सब बोझिल सा लगता है
ज़िंदगी, ज़िंदगी ढूंढने में ही निकल जाती है,
सेहत अच्छी हो सदा , खाओ केला मिल्क ।
शायरों के साथ ढल जाती ग़ज़ल।
जिंदगी रो आफळकुटौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
क्यों सताता है रे अशांत मन,
जो ख़ुद आरक्षण के बूते सत्ता के मज़े लूट रहा है, वो इसे काहे ख