अयोध्या धाम तुम्हारा तुमको पुकारे
बड़ी बहु को नौकर छोटी की प्रीत से
गर मुहब्बत करते हो तो बस इतना जान लेना,
प्रकृति की गोद खेल रहे हैं प्राणी
**हो गया हूँ दर-बदर, चाल बदली देख कर**
शिकायत करें भी तो किससे करें हम ?
समय संवाद को लिखकर कभी बदला नहीं करता
*पत्थर तैरे सेतु बनाया (कुछ चौपाइयॉं)*
हर्षित आभा रंगों में समेट कर, फ़ाल्गुन लो फिर आया है,
मेरा किरदार शहद और नीम दोनों के जैसा है
दिल की बात को जुबान पर लाने से डरते हैं
हमे अब कहा फिक्र जमाने की है
हम गुलामी मेरे रसूल की उम्र भर करेंगे।
तुम चुप रहो तो मैं कुछ बोलूँ