2694.*पूर्णिका*
2694.*पूर्णिका*
करम निगाहें करते हैं
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करम निगाहें करते हैं ।
हम तो आहें भरते हैं ।।
रोज तमाशा देखोगे ।
फैला बाहें भरते हैं ।।
खेल नहीं जीवन जीना।
मरना राहें करते हैं ।।
लोग बिगड़ते बनते कब ।
डूबे थाहें भरते हैं ।।
दुनिया देखे खेदू अब ।
हरदम चाहें करते हैं ।।
……….✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
06-11-23 सोमवार