कैसे हाल-हवाल बचाया मैंने
कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
ముందుకు సాగిపో..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
तेरी सुंदरता पर कोई कविता लिखते हैं।
सोचके बत्तिहर बुत्ताएल लोकके व्यवहार अंधा होइछ, ढल-फुँनगी पर
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
रफ़्ता -रफ़्ता पलटिए पन्ने तार्रुफ़ के,
बड़े परिवर्तन तुरंत नहीं हो सकते, लेकिन प्रयास से कठिन भी आस
prAstya...💐
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मईया एक सहारा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
School ke bacho ko dusre shehar Matt bhejo
*नहीं फेंके अब भोजन (कुंडलिया)*
अच्छे दोस्त भी अब आंखों में खटकने लगे हैं,
विघ्न-विनाशक नाथ सुनो, भय से भयभीत हुआ जग सारा।
अपने दिमाग से वह सब कुछ मिटा
जिस प्रकार इस धरती में गुरुत्वाकर्षण समाहित है वैसे ही इंसान