गैरों की भीड़ में, अपनों को तलाशते थे, ख्वाबों के आसमां में,
कुछ राज़ बताए थे अपनों को
गुजर रही थी उसके होठों से मुस्कुराहटें,
यूं तेरे फोटो को होठों से चूम करके ही जी लिया करते है हम।
*सीधे-साधे लोगों का अब, कठिन गुजारा लगता है (हिंदी गजल)*
उस"कृष्ण" को आवाज देने की ईक्षा होती है
किसी अनजाने पथ पर भय जरूर होता है,
इंतज़ार एक दस्तक की, उस दरवाजे को थी रहती, चौखट पर जिसकी धूल, बरसों की थी जमी हुई।
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मैं मन की भावनाओं के मुताबिक शब्द चुनती हूँ
अपना साया ही गर दुश्मन बना जब यहां,
जो दूरियां हैं दिल की छिपाओगे कब तलक।
Nature is my care taker now
ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है