आओ न! बचपन की छुट्टी मनाएं
अपनी हद में ही रहो तो बेहतर है मन मेरे
जिस्म झुलसाती हुई गर्मी में..
-मोहब्बत नही है तो कुछ भी नही है -
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
लिबास -ए – उम्मीद सुफ़ेद पहन रक्खा है
अयोध्या धाम तुम्हारा तुमको पुकारे
अगर आप अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर देते हैं,तो आप सम्पन्न है
*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)
अरे यार तू जा जहाँ जाना चाहती है जा,
మాయా లోకం
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'