2670.*पूर्णिका*
2670.*पूर्णिका*
दुनिया प्यारी लगती है
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दुनिया प्यारी लगती है ।
बेहद न्यारी लगती है ।।
मंजिल है मंजिल अपनी।
राज दुलारी लगती है ।।
फूल खिले बगियां महके।
यूं बलिहारी लगती है ।।
असली नकली हम जाने ।
चीजें बाजारी लगती है ।।
दामन थामें चल खेदू ।
नब्ज चिन्हारी लगती है ।।
……..✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
01-11-23 बुधवार