ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
उनकी नज़रों में अपना भी कोई ठिकाना है,
मै खामोश हूँ , कमज़ोर नहीं , मेरे सब्र का इम्तेहान न ले ,
पधारे दिव्य रघुनंदन, चले आओ चले आओ।
उधार का ज्ञान - रविकेश झा
ओ त्याग मुर्ति माँ होती है
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
रक्षाबंधन के शुभअवसर में "सोज" के दोहे
बचपन और गांव
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
दस्त बदरिया (हास्य-विनोद)
स्वाद छोड़िए, स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए।
उलझी हुई है ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ सँवार दे,
Communication is beyond texting good morning, I miss you and
(1ग़ज़ल) बंजर पड़ी हैं धरती देखें सभी नदी को
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
साक्षात्कार- पीयूष गोयल लेखक
काश तुम कभी जोर से गले लगा कर कहो