परित्यक्ता
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
झूठ का आवरण ओढ़, तुम वरण किसी का कर लो, या रावण सा तप बल से
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
*स्वामी विवेकानंद* 【कुंडलिया】
आहुति चुनाव यज्ञ में, आओ आएं डाल
ना तो हमारी तरह तुम्हें कोई प्रेमी मिलेगा,
हाथ छुडाकर क्यों गया तू,मेरी खता बता
चेहरे पर लिए तेज निकला है मेरा यार
जिस प्रकार लोहे को सांचे में ढालने पर उसका आकार बदल जाता ह
Go wherever, but only so far,"
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
दुनिया में कहीं नहीं है मेरे जैसा वतन
Now we have to introspect how expensive it was to change the
खुश रहने वाले गांव और गरीबी में खुश रह लेते हैं दुःख का रोना
जब तक आप जीवित हैं, जीवित ही रहें, हमेशा खुश रहें