आज के समाज का यही दस्तूर है,
इक ज़िंदगी मैंने गुजारी है
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
*सवा लाख से एक लड़ाऊं ता गोविंद सिंह नाम कहांउ*
बड़े सलीके, सुकून और जज़्बात से
आ जाओ अब कृष्ण कन्हाई,डरा रही है तन्हाई है
मेरे जीतने के बाद बहुत आएंगे
हर हाल में बढ़ना पथिक का कर्म है।
रमेशराज के बालमन पर आधारित बालगीत
वक्त इतना बदल गया है क्युँ
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
संवेदनशील होना किसी भी व्यक्ति के जीवन का महान गुण है।