कामवासना
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
हर दफ़ा जब बात रिश्तों की आती है तो इतना समझ आ जाता है की ये
मौहब्बत को ख़ाक समझकर ओढ़ने आयी है ।
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
सौ सदियाँ
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
सफर वो जिसमें कोई हमसफ़र हो
चाहत मोहब्बत और प्रेम न शब्द समझे.....
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।