2 जून की रोटी.......एक महत्व
जहां प्रेम है वहां आनंदित हुआ जा सकता है, लेकिन जहां मोह है
मन को भाये इमली. खट्टा मीठा डकार आये
यह गलतफहमी कभी नहीं पालता कि,
ताउम्र जलता रहा मैं तिरे वफ़ाओं के चराग़ में,
मिलते तो बहुत है हमे भी चाहने वाले
**कब से बंद पड़ी है गली दुकान की**
हमनें कर रखें थे, एहतराम सारे
अरे इंसान हैं हम, भगवान नहीं!
The flames of your love persist.
मैं हूँ कौन ? मुझे बता दो🙏
*सपने कुछ देखो बड़े, मारो उच्च छलॉंग (कुंडलिया)*
नाम:- प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
कृष्ण कुंवर ने लिया अवतरण
शिक्षा का उद्देश्य भूल गए, नव छात्र ये कर्म भूल गए