बुरे लोग अच्छे क्यों नहीं बन जाते
इंसान चाहता है सब कुछ अपने वक्त पर,पर जिंदगी का हर मोड़ है व
बिंते-हव्वा (हव्वा की बेटी)
सच कहना जूठ कहने से थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि इसे कहने म
रुका तू मुद्दतों के बाद मुस्कुरा के पास है
हो पवित्र चित्त, चित्र चांद सा चमकता है।
मां रिश्तों में सबसे जुदा सी होती है।
ये आप पर है कि ज़िंदगी कैसे जीते हैं,
ऐसे हालात क्यूॅं दिखाया तूने ईश्वर !
यदि आपका चरित्र और कर्म श्रेष्ठ हैं, तो भविष्य आपका गुलाम हो
लोग महापुरुषों एवम् बड़ी हस्तियों के छोटे से विचार को भी काफ
*उत्साह जरूरी जीवन में, ऊर्जा नित मन में भरी रहे (राधेश्यामी
सीता स्वयंवर, सीता सजी स्वयंवर में देख माताएं मन हर्षित हो गई री
ताश के महल अब हम बनाते नहीं
वर्तमान साहित्यिक कालखंड को क्या नाम दूँ.
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम