प्यार में लेकिन मैं पागल भी नहीं हूं - संदीप ठाकुर
मुझे आदिवासी होने पर गर्व है
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
" जीवन है गतिमान "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
धुप सी शक्ल में वो बारिश की बुंदें
मैं समझता हूँ, तुम सफल होना चाहते हो। तुम्हें अपने सपनों तक
आसमां में चाँद छुपकर रो रहा है क्यूँ भला..?
बहुत मुश्किल होता हैं, प्रिमिकासे हम एक दोस्त बनकर राहते हैं
यथार्थवादी कविता के रस-तत्त्व +रमेशराज
*नव संसद का सत्र, नया लाया उजियारा (कुंडलिया)*
మువ్వగోపాల మురళీధరాయ..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
व्यक्ति को ख्वाब भी वैसे ही आते है जैसे उनके ख्यालात होते है
मुझे भी अब उनकी फ़िक्र रहती है,
आसमां से गिरते सितारे का एक लम्हा मैंने भी चुराया है।
*Each moment again I save*
तूं कैसे नज़र अंदाज़ कर देती हों दिखा कर जाना
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - ७)
अच्छी लगती धर्मगंदी/धर्मगंधी पंक्ति : ’
हल्के किरदार अक्सर घाव गहरे दे जाते हैं।
रास्ते और राह ही तो होते है