किसी अनमोल वस्तु का कोई तो मोल समझेगा
सफ़र ज़िंदगी का आसान कीजिए
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
- उसको लगता था की मुझे उससे प्रेम हो गया है -
शराब हो या इश्क़ हो बहकाना काम है
"तरक्कियों की दौड़ में उसी का जोर चल गया,
बेनाम जिन्दगी थी फिर क्यूँ नाम दे दिया।
छल फरेब की बात, कभी भूले मत करना।
23/76.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Don't Give Up..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
*** तूने क्या-क्या चुराया ***
वृक्ष मित्र अरु गुरू महान