शायद मेरी बातों पर तुझे इतनी यक़ीन ना होगी,
शादी वो पिंजरा है जहा पंख कतरने की जरूरत नहीं होती
हमारी खुशी हमारी सोच पर निर्भर है। हम शिकायत कर सकते हैं कि
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
"भटकाव के बाद हासिल ठहराव सुक़ून देता ही है।"
जिंदगी की तन्हाइयों मे उदास हो रहा था(हास्य कविता)
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
जगह-जगह पुष्प 'कमल' खिला;
दग़ा तुमसे जब कोई, तेरा हमख़्वाब करेगा
*कभी प्यार में कोई तिजारत ना हो*
हर कदम बिखरे थे हजारों रंग,
*फागुन का बस नाम है, असली चैत महान (कुंडलिया)*