*सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक), रामपुर, उत्तर प्रदेश का प्रथम
ज़िंदगी एक कहानी बनकर रह जाती है
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
मैदान-ए-जंग में तेज तलवार है मुसलमान,
गोवर्धन गिरधारी, प्रभु रक्षा करो हमारी।
मैने यह कब कहा की मेरी ही सुन।
हमने बस यही अनुभव से सीखा है
पुरानी यादें ताज़ा कर रही है।
मिलना यह हमारा, सुंदर कृति है
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - पूर्व आयुष निदेशक - दिल्ली
तपाक से लगने वाले गले , अब तो हाथ भी ख़ौफ़ से मिलाते हैं
छोड़ दिया ज़माने को जिस मय के वास्ते
कविता __ ( मन की बात , हिंदी के साथ )
वर्तमान समय में रिश्तों की स्थिति पर एक टिप्पणी है। कवि कहता
“अनोखी शादी” ( संस्मरण फौजी -मिथिला दर्शन )
प्रेमी ने प्रेम में हमेशा अपना घर और समाज को चुना हैं