बड़े बच्चों का नाम स्कूल में लिखवाना है
एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
राह नहीं मंजिल नहीं बस अनजाना सफर है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
हमारे ठाठ मत पूछो, पराँठे घर में खाते हैं(मुक्तक )
अनपढ़ को अंधेरे से उजाले की तरफ,, ले जाने वाले हमारे प्यारे श
दुखता बहुत है, जब कोई छोड़ के जाता है
अब किसी से कोई शिकायत नही रही