आकांक्षा पत्रिका समीक्षा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हंसें और हंसाएँ
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
कभी निशाना चूकता नहीं।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
इंसान भी कितना मूर्ख है कि अपने कर्मों का फल भोगता हुआ दुख औ
नफ़रतों का दौर कैसा चल गया
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal
दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
दिलों का हाल तु खूब समझता है
परम प्रकाश उत्सव कार्तिक मास
मत कर गीरबो
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
रावण तो अब भी ज़िन्दा है !
खुले आम जो देश को लूटते हैं।
कुछ लोग कहते है की चलो मामला रफा दफ़ा हुआ।