"सच के खिलाफ विद्रोह करते हैं ll
7. *मातृ-दिवस * स्व. माँ को समर्पित
जहाँ में किसी का सहारा न था
*लो कर में नवनीत (हास्य कुंडलिया)*
- में बचपन से कवि था मरणासन्न तक कवि रहूंगा -
अब्र ज़ुल्फ़ों के रुखसार पे बिखर जाने दो।
जुड़ी हुई छतों का जमाना था,
हर मौसम का अपना अलग तजुर्बा है
हमने उनकी मुस्कुराहटों की खातिर
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
एक सूरज अस्त हो रहा है, उस सुदूर क्षितिज की बाहों में,
बदलती हवाओं की परवाह ना कर रहगुजर
किसी को मारकर ठोकर ,उठे भी तो नहीं उठना।