उसे भूला देना इतना आसान नहीं है
जो सब समझे वैसी ही लिखें वरना लोग अनदेखी कर देंगे!@परिमल
वादे निभाने की हिम्मत नहीं है यहां हर किसी में,
मां को शब्दों में बयां करना कहां तक हो पाएगा,
भाग गए रणछोड़ सभी, देख अभी तक खड़ा हूँ मैं
चापलूसों और जासूसों की सभा में गूंगे बना रहना ही बुद्धिमत्ता
चली लोमड़ी मुंडन तकने....!
singh kunwar sarvendra vikram
स्वतंत्रता दिवस की पावन बेला
ग़ज़ल _ मुहब्बत से भरे प्याले , लबालब लब पे आये है !
*कर्म बंधन से मुक्ति बोध*
दिन रात जैसे जैसे बदलेंगे