तुझसे यूं बिछड़ने की सज़ा, सज़ा-ए-मौत ही सही,
कर क्षमा सब भूल मैं छूता चरण
प्रेम के नाम पर मर मिटने वालों की बातें सुनकर हंसी आता है, स
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
श्रीराम अयोध्या में पुनर्स्थापित हो रहे हैं, क्या खोई हुई मर
సంస్థ అంటే సేవ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
शीर्षक - मेरा भाग्य और कुदरत के रंग
किसी को अगर प्रेरणा मिलती है
"जलाओ दीप घंटा भी बजाओ याद पर रखना
*जाने क्या - क्या सोचकर, ससुराल जाती बेटियाँ(गीतिका)*
ग़ज़ल _ महकती जब ये मिट्टी प्यार की नींदें उड़ाती है ,
दूरी इतनी है दरमियां कि नजर नहीं आती
लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पूछती है
सोच रहा अधरों को तेरे....!
singh kunwar sarvendra vikram