Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आवारापन एक अमरबेल जैसा जब धीरे धीरे परिवार, समाज और देश रूपी
दरक जाती हैं दीवारें यकीं ग़र हो न रिश्तों में
🥀✍*अज्ञानी की*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
तालाब समंदर हो रहा है....
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
भाल हो
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
एक बार ऐसा हुआ कि पति-पत्नी के बीच किसी छोटी सी बात पर झगड़ा
कच्चे मकानों में अब भी बसती है सुकून-ए-ज़िंदगी,
यहां दिल का बड़ा होना महानता और उदारता का प्रतीक है, लेकिन उ
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
*तिक तिक तिक तिक घोड़ा आया (बाल कविता)*
आख़िर तुमने रुला ही दिया!
बढ़ने वाला हर पत्ता आपको बताएगा