ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
आजकल नहीं बोलता हूं शर्म के मारे
मिलना अगर प्रेम की शुरुवात है तो बिछड़ना प्रेम की पराकाष्ठा
खुद को संवार लूँ.... के खुद को अच्छा लगूँ
*दीपावली का ऐतिहासिक महत्व*
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
दोहे बिषय-सनातन/सनातनी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ढलता सूरज गहराती लालिमा देती यही संदेश
23/176.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
बर्फ की चादरों को गुमां हो गया