इस तरह छोड़कर भला कैसे जाओगे।
हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए
चोर उचक्के बेईमान सब, सेवा करने आए
एक ठंडी हवा का झोंका है बेटी: राकेश देवडे़ बिरसावादी
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
*आए दिन त्योहार के, मस्ती और उमंग (कुंडलिया)*
हिज़ाब को चेहरे से हटाएँ किस तरह Ghazal by Vinit Singh Shayar
जिस कदर उम्र का आना जाना है
अभ्यर्थी हूँ
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
मिला कुछ भी नहीं खोया बहुत है
आसमाँ मेें तारे, कितने हैं प्यारे
मानव हमारी आगोश में ही पलते हैं,
23-निकला जो काम फेंक दिया ख़ार की तरह
दिन गुज़रते रहे रात होती रही।
हंसी आ रही है मुझे,अब खुद की बेबसी पर