ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
डॉ0 रामबली मिश्र:व्यक्तित्व एवं कृतित्व
हमारे जख्मों पे जाया न कर।
"तुम्हें कितना मैं चाहूँ , यह कैसे मैं बताऊँ ,
अपने मोहब्बत के शरबत में उसने पिलाया मिलाकर जहर।
मेरी सच्चाई को बकवास समझती है
■ 80 फीसदी मुफ्तखोरों की सोच।
अवचेतन और अचेतन दोनों से लड़ना नहीं है बस चेतना की उपस्थिति
मेरी कलम से बिखरी स्याही कभी गुनगुनाएंगे,
काश तुम मेरी जिंदगी में होते
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रस्म ए उल्फ़त में वफ़ाओं का सिला
*कौन लड़ पाया समय से, हार सब जाते रहे (वैराग्य गीत)*
मौसम किसका गुलाम रहा है कभी
वहम और अहम में रहना दोनो ही किसी व्यक्ति के लिए घातक होता है
भुला न पाऊँगी तुम्हें....!