मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक].
हक औरों का मारकर, बने हुए जो सेठ।
सुंदर शरीर का, देखो ये क्या हाल है
जबकि ख़ाली हाथ जाना है सभी को एक दिन,
कितने चेहरे मुझे उदास दिखे
संविधान शिल्पी बाबा साहब शोध लेख
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जब कोई महिला किसी के सामने पूर्णतया नग्न हो जाए तो समझिए वह
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
अपने दर्द को अपने रब से बोल दिया करो।
*चलती रहती ट्रेन है, चढ़ते रहते लोग (कुंडलिया)*
स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना
सर्दी के हैं ये कुछ महीने
जवानी में तो तुमने भी गजब ढाया होगा
मैं प्रगति पर हूँ ( मेरी विडम्बना )
कभी ना होना तू निराश, कभी ना होना तू उदास