जो वक्त से आगे चलते हैं, अक्सर लोग उनके पीछे चलते हैं।।
इसलिए कहता हूं तुम किताब पढ़ो ताकि
पत्नी से पंगा लिया, समझो बेड़ा गर्क ।
*आओ-आओ इस तरह, अद्भुत मधुर वसंत ( कुंडलिया )*
बन के देखा है मैंने गुलाब का फूल,
गणपति वंदना (कैसे तेरा करूँ विसर्जन)
"सूर्य -- जो अस्त ही नहीं होता उसका उदय कैसे संभव है" ! .
चौखट पर जलता दिया और यामिनी, अपलक निहार रहे हैं
लोगों की फितरत का क्या कहें जनाब यहां तो,
न मुझे *उम्र* का डर है न मौत का खौफ।
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
किसी के इश्क में ये जिंदगी बेकार जाएगी।
पीर- तराजू के पलड़े में, जीवन रखना होता है ।