दिल-ए-साकित सज़ा-ए-ज़िंदगी कैसी लगी तुझको
बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फूलों की तरह मैं मिली थी और आपने,,
पितृ हमारे अदृश्य शुभचिंतक..
🥀*अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
जाकर वहाँ मैं क्या करुँगा
दु:ख का रोना मत रोना कभी किसी के सामने क्योंकि लोग अफसोस नही
ये शिकवे भी तो, मुक़द्दर वाले हीं कर पाते हैं,
मेरी पेशानी पे तुम्हारा अक्स देखकर लोग,
"समाज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग बदलना चाहते हैं,
हिन्दी की गाथा क्यों गाते हो
अब तो चरागों को भी मेरी फ़िक्र रहती है,