*उसकी फितरत ही दगा देने की थी।
శ్రీ గాయత్రి నమోస్తుతే..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
टूटे तारों से कुछ मांगों या ना मांगों,
मरना कोई नहीं चाहता पर मर जाना पड़ता है
एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हु
अमर शहीद स्वामी श्रद्धानंद
तेरे चेहरे को जब भी देखा है मुझको एक राज़ नज़र आया है।
कुछ बड़ा करने का वक़्त आ गया है...
दिसम्बर माह और यह कविता...😊
क्या हुआ जो मेरे दोस्त अब थकने लगे है
कितने लोग मिले थे, कितने बिछड़ गए ,
दुःख बांटने से दुःख ही मिलता है