हाइकु : रोहित वेमुला की ’बलिदान’ आत्महत्या पर / मुसाफ़िर बैठा
■ आज का शेर अपने यक़ीन के नाम।
चक्षु सजल दृगंब से अंतः स्थल के घाव से
ना होंगे परस्त हौसले मेरे,
पाखी खोले पंख : व्यापक फलक की प्रस्तुति
*शाकाहारी भोज, रोज सब सज्जन खाओ (कुंडलिया)*
मेरे प्रेम की सार्थकता को, सवालों में भटका जाती हैं।
एहसासों से भरे पल
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
गरीबी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
है वक़्त बड़ा शातिर
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
हिंदी साहित्य की नई विधा : सजल
पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।
** मन में यादों की बारात है **
काफी ढूंढ रही थी में खुशियों को,
समर्पित बनें, शरणार्थी नहीं।