2464.पूर्णिका
2464.पूर्णिका
🌷ए खिले बाग में कैसा सूनापन है 🌷
212 212 22 22 22
ए खिले बाग में कैसा सूनापन है।
दूरिया यूँ यहाँ कैसा अपनापन है ।।
प्रेम की बात सब करते हरदम देखो ।
बेहया आज कैसा दीवानापन है ।।
जिंदगी दौड़ती अरमाँ पाले यारों ।
कब मिले मीत कैसा आवारापन है ।।
हम कहे कुछ अलग ही समझे ना दुनिया ।
हँसते लोग कैसा बेचारापन है ।।
काटते रात हम तनहा तनहा खेदू ।
देखते चेहरा कैसा दिन दरपन है ।।
………….✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश ”
7-9-2023गुरुवार
(कृष्ण जन्माष्टमी)