अभी कहाँ विश्रांति, कार्य हैं बहुत अधूरा।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
कुछ रातों के घने अँधेरे, सुबह से कहाँ मिल पाते हैं।
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
कहे आनंद इस जग में एक ही बात का सार।
मुझे भी तुम्हारी तरह चाय से मुहब्बत है,
हिंदी हाइकु
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मै ज़ब 2017 मे फेसबुक पर आया आया था
पूरा जब वनवास हुआ तब, राम अयोध्या वापस आये
खुद पर भी यकीं,हम पर थोड़ा एतबार रख।
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हु
बहुत याद आएंगे श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट