ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
अक्सर कोई तारा जमी पर टूटकर
ख्यालों के महफ़िलों में एक सपना देखा था,
- में अजनबी हु इस संसार में -
अदब से उतारा होगा रब ने ख्बाव को मेरा,
आस्मां से ज़मीं तक मुहब्बत रहे
हम बस भावना और विचार तक ही सीमित न रह जाए इस बात पर ध्यान दे
सुख मिलता है अपनेपन से, भरे हुए परिवार में (गीत )
मुझे फुरसत से मिलना है तुमसे…
तेरे सिंदूर की शहादत का, दर्द नहीं मिट रहे हैं…
ग़ज़ल _ थोड़ा सा मुस्कुरा कर 🥰
कोई नी....!
singh kunwar sarvendra vikram