2318.पूर्णिका
2318.पूर्णिका
🌹राह भी गुमराह करती है 🌹
2122 212 22
राह भी गुमराह करती है ।
रोज दुनिया तबाह करती है ।।
साथ चलने की जहाँ नाटक ।
भावना भी गुनाह करती है ।।
नासमझ हम जिंदगी कैसी ।
मुहब्बतें बेपनाह करती है ।।
रौशनी की बात करते सब ।
राहतें भी वाह करती है ।।
आज बदले ये जहाँ खेदू।
खूब सूरत चाह करती है ।।
………..✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
23-5-2023मंगलवार