स्वास्थ्य विषयक कुंडलियाँ
109 कुंडलियाँ स्वास्थ्य-महामारी संबंधी
[1/12/2020, 10:35 AM] Ravi Prakash: तरुणाई (कुंडलिया)
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आई क्रांति सदैव से , तरुणाई का काम
शौर्य हिलोरें मारता , जिसमें है अविराम
जिसमें है अविराम ,राह नित नई पकड़ता
भरा हुआ उत्साह ,तनिक देखी कब जड़ता
कहते रवि कविराय , नया परिवर्तन लाई
तरुणाई है धन्य , वृक्ष पर देखो आई
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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तरुणाई = युवावस्था
उद्दाम = बंधनहीन ,स्वतंत्रता
[1/12/2020, 8:26 PM] Ravi Prakash: किसकी रहती याद (कुंडलिया)
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जाते जग से सूरमा ,किसकी रहती याद
दो दिन से ज्यादा नहीं ,आँसू उसके बाद
आँसू उसके बाद , स्वप्न आँखों में पलते
नए दौर में लोग ,मूल्य लेकर नव चलते
कहते रवि कविराय ,वर्ष सौ केवल पाते
दिखलाते हैं खेल ,बाद में सब जन जाते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 999761 5451
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सूरमा = योद्धा , बहादुर
[1/12/2020, 8:33 PM] Ravi Prakash: समझो एक सराय (कुंडलिया)
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मतलब इस संसार का ,समझो एक सराय
एक दिवस में खर्च सब ,सौ वर्षों की आय
सौ वर्षों की आय , अनिश्चितता है गहरी
अंतिम सबको ज्ञात ,पताका यम की फहरी
कहते रवि कविराय ,पता क्या मरना है कब
यह जीवन-रोमांच , जिंदगी का है मतलब
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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सराय = धर्मशाला ,मुसाफिरखाना
[3/12/2020, 10:58 AM] Ravi Prakash: जाने कल क्या ठौर (कुंडलिया)
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किसको होता है पता , आने वाला दौर
आज यहाँ है आदमी ,जाने कल किस ठौर
जाने कल किस ठौर ,नदी की ज्यों है धारा
मिट्टी बनती रेत , काल ने पलटा मारा
कहते रवि कविराय ,भाग्य कहता है खिसको
छोड़ो गाँव तुरंत ,सफर करना किस-किसको
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ठौर = जगह , स्थान
[6/12/2020, 12:21 PM] Ravi Prakash: अचरज (कुंडलिया)
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अचरज दुनिया में यही ,दिखता है दिन-रात
रोज मरण के हाथ से ,जीवन खाता मात
जीवन खाता मात ,रोज शव-यात्रा जाती
नश्वर तन की बात ,बुद्धि में पर कब आती
कहते रवि कविराय ,राम को रोजाना भज
राम नाम है सत्य ,भला इसमें क्या अचरज
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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अचरज = आश्चर्य ,विस्मय ,अचंभा
[6/12/2020, 10:41 PM] Ravi Prakash: जीवन की लय (कुंडलिया)
?????????
लय में होता है निहित ,जीवन का सब सार
लय का सुर – संगीत है ,जीवन का आधार
जीवन का आधार ,इसी से गतिविधि चलती
बिगड़ी जब लय-ताल,चाल विकृत हो खलती
कहते रवि कविराय ,मनुज चाहे जिस वय में
जीवन का आनंद ,साँस की पाओ लय में
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[6/12/2020, 10:49 PM] Ravi Prakash: आयु मानव को खाती (कुंडलिया)
?????????
लगती दीमक काष्ठ को ,लगी लौह को जंग
दो दिन बीते हैं खिले ,उड़ा पुष्प का रंग
उड़ा पुष्प का रंग ,आयु मानव को खाती
यौवन का रस सूख , देह बूढ़ी हो जाती
कहते रवि कविराय ,काल की गति है ठगती
आता लेकर पाश ,देर फिर कितनी लगती
?????????
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[7/12/2020, 11:37 AM] Ravi Prakash: जीवन है मुस्कान (कुंडलिया)
????????
मरने की क्या सोचना ,मरना है आसान
जीने में चातुर्य है , जीवन है मुस्कान
जीवन है मुस्कान ,कला जीने की सीखो
मंद हास-परिहास ,लिए होठों पर दीखो
कहते रवि कविराय ,यहाँ कुछ आए करने
जीने को है जन्म ,भेजते प्रभु कब मरने
??☘️??☘️??☘️☘️
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[12/12/2020, 3:09 PM] Ravi Prakash: कोरोना : पक्ष – विपक्ष (कुंडलिया)
?????????
कोरोना में अब कहाँ , पहले जैसी बात
बहुतेरे जन कह रहे , सबकी खाता लात
सबकी खाता लात ,कौन अब उससे डरता
जब देखो उपहास , अभागे की ही करता
कहते रवि कविराय ,मास्क नियमों का ढोना
घातक केवल रोग , अस्पताली कोरोना
???????????
कोरोना ने जब सुना , मेरा है उपहास
अट्टहास करने लगा , आया सब के पास
आया सबके पास , मुझे अति घातक जानो
पहुँचाता यमलोक , सत्य यह दर्प न मानो
कहते रवि कविराय,अचिंतित तनिक न होना
समझो मैं हूँ काल , नाम मेरा कोरोना
?????????
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[12/12/2020, 6:54 PM] Ravi Prakash: मरने के उपरांत (कुंडलिया)
?☘️?☘️?☘️?☘️?
पाते जन कब देख-सुन , मरने के उपरांत
मरी देह हलचल-रहित , रहती केवल शांत
रहती केवल शांत , नहीं रुदन वह सुनती
देखे कब षड्यंत्र , कुटिलता है जो बुनती
कहते रवि कविराय ,छोड़कर जग सब जाते
किसको कितना शोक ,जान हर्गिज कब पाते
??????????
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[12/12/2020, 9:28 PM] Ravi Prakash: आँखें (कुंडलिया)
????????☘️?
जानो आँखों से जरा ,किसका मुखड़ा कौन
आँखें भी हैं बोलतीं ,यद्यपि दिखतीं मौन
यद्यपि दिखतीं मौन ,आँख से नेह बरसता
अगर देखतीं घात ,खून भीतर में बसता
कहते रवि कविराय ,सत्य आँखों को मानो
कहतीं तभी न झूठ ,इन्हीं की मन की जानो
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[13/12/2020, 11:09 AM] Ravi Prakash: घाम (कुंडलिया)
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जितनी सुंदर सर्दियाँ , उससे सुंदर घाम
आई तो ज्यों मिल गया ,परमेश्वर का धाम
परमेश्वर का धाम ,स्वर्ग का सुख सब पाते
सूरज देता ताप , मजे फोकट में आते
कहते रवि कविराय ,न पूछो अच्छी कितनी
सर्दी की सौगात , एक वर मानो जितनी
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घाम = धूप
फोकट = मुफ्त
[13/12/2020, 11:56 AM] Ravi Prakash: स्वर्ग नर्क ब्रह्मांड (कुंडलिया)
??☘️??☘️??☘️
जाते हैं जग से कहाँ , जन मरने के बाद
इस पर सचमुच ही सही ,छिड़ता रहा विवाद
छिड़ता रहा विवाद ,याद कब लेकर आते
पुनर्जन्म की बात , ग्रंथ केवल बतलाते
कहते रवि कविराय ,काश ! ईश्वर दिखलाते
स्वर्ग नर्क ब्रह्मांड ,जहाँ हम मर कर जाते
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[13/12/2020, 12:47 PM] Ravi Prakash: एंटीक (कुंडलिया)
?????????
होती कब हैं वस्तुएँ ,दो दिन में एंटीक
सौ बरसों की साधना ,करनी पड़ती ठीक
करनी पड़ती ठीक ,सहेजी रखी सँवारी
इन में युग की छाप ,दिखी सुंदर-सी प्यारी
कहते रवि कविराय ,इमारत अक्सर रोती
मैं दिखलाती शान ,कद्र यदि मेरी होती
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एंटीक = प्राचीन वस्तु जो सामान्यतः एक सौ वर्ष पुरानी हो
[13/12/2020, 10:50 PM] Ravi Prakash: सफर कोहरे बीच (कुंडलिया)
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भारी छाया कोहरा ,समझो रस्ता जाम
रात अँधेरी जब हुई , अच्छा है विश्राम
अच्छा है विश्राम ,धुंध में राह न दिखती
लापरवाही एक , हादसा भीषण लिखती
कहते रवि कविराय ,जिंदगी कह- कह हारी
सफर कोहरे बीच , एक गलती है भारी
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[13/12/2020, 11:02 PM] Ravi Prakash: सत्य (कुंडलिया)
??☘️??☘️??☘️
मैने पूछा काल से ,सच्चा जग में कौन
उत्तर उसने कब दिया ,साधा गहरा मौन
साधा गहरा मौन ,कहा फिर सब में खामी
सब में कोई भूल ,सभी कपटी खल कामी
कहते रवि कविराय ,काल के नख हैं पैने
उसने देखा सत्य , नहीं तुमने या मैने
?????????
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[13/12/2020, 11:06 PM] Ravi Prakash: पल में होता हादसा (कुंडलिया)
?????????
पल में होता हादसा , पल में जाती जान
हाड़ – मांस का तन बना ,पल में काष्ठ समान
पल में काष्ठ समान,जगत यह पल का मेला
पल में निकली साँस , देह मिट्टी का ढेला
कहते रवि कविराय,मनुज हो नभ जल थल में
पकड़ेंगे यमराज , उठा लेंगे बस पल में
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[14/12/2020, 11:56 AM] Ravi Prakash: एकाकी ( कुंडलिया )
?????????
एकाकी बन रह गए ,घर में वृद्ध तमाम
सूनी आँखें देखतीं ,बुझी-बुझी-सी शाम
बुझी-बुझी -सी शाम , न बेटे बहुएँ पोते
सदा सोचते काश ,साथ सब रहते होते
कहते रवि कविराय ,अभी जो साँसे बाकी
काट रही हैं कैद , जिंदगी की एकाकी
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[14/12/2020, 12:09 PM] Ravi Prakash: परिचय
( एक कविता : दो कुंडलियाँ )
?????????
परिचय है इंसान का , कितने रिश्तेदार
कौन हुए माता – पिता , पत्नी पति परिवार
पत्नी पति परिवार , पढ़ाई कितनी पाई
सर्विस या व्यवसाय , हो रही कहो कमाई
कहते रवि कविराय ,मरण की तिथि सबकी तय
हुई जीवनी पूर्ण , मनुज का पूरा परिचय
??????????
असली परिचय में लिखो ,कितने अश्रु-प्रपात
कितने उमड़े भाव कब ,मन से कब-कब बात
मन से कब-कब बात ,आत्म से मिलना पाया
जग की छोड़ी बाँह , अकेले चलना आया
कहते रवि कविराय ,कमर किसने कब कस ली
कब भीतर का युद्ध ,कहो यह परिचय असली
??????????
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[14/12/2020, 4:48 PM] Ravi Prakash: रोजाना (कुंडलिया)
??????????
रोजाना कब ग्रीष्म है ,रोजाना कब शीत
रोजाना कब नफरतें , रोजाना कब प्रीत
रोजाना कब प्रीत ,कभी उत्साह न चलता
कभी हाथ पर हाथ ,धरे रहना है खलता
कहते रवि कविराय ,रोज कब होटल खाना
बहुत हुए सौ साल , साँस लेते रोजाना
??????????
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[15/12/2020, 11:12 AM] Ravi Prakash: मृत्यु (कुंडलिया)
??????????
टाले से टलता कहाँ ,अटल मृत्यु का सत्य
आदिकाल से हो रहा ,जग में इसका नृत्य
जग में इसका नृत्य ,भयावह यह कहलाती
जब आती है पास ,जगत के अश्रु बहाती
कहते रवि कविराय,पता कब किसको खा ले
किस में हिम्मत बात ,कौन जो इसकी टाले
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अटल = अचल , पक्का , दृढ़ निश्चयी
[15/12/2020, 2:44 PM] Ravi Prakash: कोरोना में शादियाँ
( एक कविता : तीन कुंडलियाँ )
?????????
कोरोना की शादियाँ ,आतीं अब भी याद
सब का पत्ता कट गया ,दस नंबर के बाद
दस नंबर के बाद ,बैंड कब बग्घी बाजा
बीस जनों के बीच ,सजे थे दूल्हे राजा
कहते रवि कविराय ,याद से इसे न खोना
बड़े काम की चीज ,रही सोचो कोरोना
?????????
शादी सस्ते में हुई , कोरोना का राज
कृपा रही छह माह तक ,क्यों रूठे हो आज
क्यों रूठे हो आज , वही फिर से फैलावा
होटल बैंड बरात , धनिक होने का दावा
कहते रवि कविराय ,शुरू फिर से बर्बादी
सुखी किया तुम धन्य ,कराई सस्ती शादी
????????
कोरोना की सादगी ,वाह – वाह क्या बात
घर-घर के बस लोग थे ,घर-घर की बारात
घर – घर की बारात ,निमंत्रण – पत्र छपाई
होटल दावत शान ,किसी ने कब दिखलाई
कहते रवि कविराय ,दिखावा फिर से ढोना
फिर से बाजा- बैंड , गया नाचो कोरोना
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[15/12/2020, 8:02 PM] Ravi Prakash: आँसू (कुंडलिया)
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आँसू से बढ़कर नहीं ,समझो कोई मीत
ढुलका तो फिर बन गया ,आहें भरता गीत
आहें भरता गीत ,हृदय की व्यथा सुनाता
जो भीतर की बात ,जगत तक यह पहुँचाता
कहते रवि कविराय ,ठहर जाता तो धाँसू
बन जाता चट्टान , दर्द का साथी आँसू
????????
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[20/12/2020, 10:17 AM] Ravi Prakash: दो पल के संयोग (कुंडलिया)
?????????
सपने जैसी जानिए , जीवन की हर बात
वह दिन जो अब चल रहा ,या फिर गुजरी रात
या फिर गुजरी रात ,काल सब खेल खिलाता
कुछ से हुआ बिछोह ,जुड़ा नूतन कुछ नाता
कहते रवि कविराय ,कौन इस जग में अपने
दो पल के संयोग , सभी दो पल के सपने
??????????
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[21/12/2020, 9:29 AM] Ravi Prakash: मास्कमय मेले (कुंडलिया)
??
मेले में जनता जुड़ी ,जन आपस में पास
मास्क लगाना लग रहा , जैसे हो परिहास
जैसे हो परिहास , मास्क जेबों में रखते
वरना कैसे लोग , स्वाद रसगुल्ला चखते
कहते रवि कविराय ,लोग कब रहे अकेले
सब परिचित अनजान ,मिले जब पहुँचे मेले
??
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[22/12/2020, 5:25 PM] Ravi Prakash: देह का अंत जरूरी (कुंडलिया)
???
मुश्किल होता है सदा , ढोना जर्जर देह
जब ढोना मुश्किल लगे ,करिए तनिक न नेह
करिए तनिक न नेह , देह का अंत जरूरी
दुखद देह का दाह , किंतु होती मजबूरी
कहते रवि कविराय ,सभी का रोता है दिल
अपने जाते दूर , देखना होता मुश्किल
???
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[22/12/2020, 5:26 PM] Ravi Prakash: जीवन के सौ साल (कुंडलिया)
???
जीने को सबको मिले ,जीवन के सौ साल
फिर आकर खाता रहा ,निर्मम पेटू काल
निर्मम पेटू काल , सुखद दो दिवस कहानी
ढल जाती फिर शाम ,छोड़ बचपना जवानी
कहते रवि कविराय , घूँट विष के हैं पीने
सौ – सौ लगते रोग , बुढ़ापा कब दे जीने
???
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[24/12/2020, 8:57 AM] Ravi Prakash: बच्चे (कुंडलिया)
?????
बच्चे यह ही चाहते , हो बच्चों का संग
खेलें कूदें मौज लें , भरें जगत में रंग
भरें जगत में रंग ,साथ कुछ नृत्य रचाएँ
कुछ आपस में हास ,तनिक झगड़े हो जाएँ
कहते रवि कविराय , उम्र के होते कच्चे
सच्चे मन के वाह , वाह ! क्या होते बच्चे
??????
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[26/12/2020, 10:21 AM] Ravi Prakash: बीत रहे दिन-रात ( कुंडलिया )
??????????
थोड़े दिन की देह है ,थोड़े दिन घर – बार
थोड़े दिन ही के लिए , मिलता यह संसार
मिलता यह संसार , सभी से थोड़ा नाता
थोड़े दिन के बाद , छोड़ हर कोई जाता
कहते रवि कविराय ,काल कब किसको छोड़े
बीत रहे दिन – रात , सोचिए थोड़े – थोड़े
??????
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[29/12/2020, 7:00 PM] Ravi Prakash: रात (कुंडलिया)
????????
सबसे अच्छी जानिए ,जग में होती रात
रात मधुर है इसलिए ,नित्य नींद की बात
नित्य नींद की बात ,रात का चाँद सुहाना
जगमग तारक व्योम ,रूप इसका मस्ताना
कहते रवि कविराय ,बनी है दुनिया जब से
सबको लगती रात ,जगत में प्यारी सबसे
????????
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“”””””””””‘”””””””””””””””””””””””””””””””””””””
तारक = तारों से भरा
व्योम = आकाश
[29/12/2020, 8:24 PM] Ravi Prakash: धूप (कुंडलिया)
?????????
खाते सर्दी में सुखद , गरम सुहानी धूप
खिल-खिल जाता है बदन ,चढ़-चढ़ जाता रूप
चढ़-चढ़ जाता रूप ,स्वर्ग सुविधा ज्यों मिलती
धन्य – धन्य हैं भाग्य ,धूप जिनके घर खिलती
कहते रवि कविराय , अभागे आग जलाते
भाग्यवान हैं मस्त , धूप फोकट में खाते
????????
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[29/12/2020, 9:37 PM] Ravi Prakash: सूर्य का जन्म-मरण (कुंडलिया)
?????????
रोजाना होता मरण , सूरज जाता डूब
अद्भुत यह दुनिया रची ,सोचो तो क्या खूब
सोचो तो क्या खूब ,सुबह फिर पैदा होता
दिन-भर रहती धूप ,रात को फिर जग सोता
कहते रवि कविराय , सूर्य का चक्र पुराना
रोज हो रहा जन्म , मृत्यु होती रोजाना
??????????
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[29/12/2020, 9:46 PM] Ravi Prakash: रोग (कुंडलिया)
????☘️???☘️
रोगों से घिरता मनुज ,तन को लगती जंग
रोगी तन होता जहाँ ,रहती कहाँ उमंग
रहती कहाँ उमंग ,हुई जब जर्जर काया
कहाँ लुभाते भोज ,व्यर्थ लगती है माया
कहते रवि कविराय , बचे रहिए भोगों से
तन वरना अभिशाप ,बोझ लगता रोगों से
?????????
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[30/12/2020, 1:40 PM] Ravi Prakash: नश्वर 【कुंडलिया】
?????????
मरना सबको एक दिन ,आती सबको मौत
जीवन से इसका सदा , रिश्ता जैसे सौत
रिश्ता जैसे सौत , अचानक आ ले जाती
कभी रुग्ण कर देह , ढेर किस्तों में खाती
कहते रवि कविराय , मौत से हरदम डरना
नश्वर यह संसार , सुनिश्चित सबको मरना
???????
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नश्वर =नाशवान
रुग्ण = बीमार
[31/12/2020, 10:15 AM] Ravi Prakash: हँसना-रोना (कुंडलिया)
?????????
हँसना – रोना जानिए , जैसे दिन या रात
हँसने के दो दिन मिले ,दो दिन आँसू-पात
दो दिन आँसू-पात ,समय सब खेल खिलाता
सुख के पीछे शोक ,शोक के बाद हँसाता
कहते रवि कविराय , लिखा पहले से होना
कठपुतली की भाँति , हमारा हँसना – रोना
?☘️?☘️?☘️?
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???????
आँसू-पात = अश्रु-पात ,आँसुओं का गिरना, आँसुओं का बहना
[31/12/2020, 11:01 AM] Ravi Prakash: नश्वर काया (कुंडलिया)
??????
पाया जीवन का यही ,सरल गुह्यतम सूत्र
खाते मधुमय भोज हैं ,बनता है मल-मूत्र
बनता है मल-मूत्र , पेट है मल का थैला
बाहर उजला रूप , भरा भीतर है मैला
कहते रवि कविराय ,समझ लो नश्वर काया
दो दिन का संसार ,एक मेला ज्यों पाया
???????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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गुह्यतम = अत्यंत गुप्त ,गहरा रहस्यमय
[04/01, 12:34 PM] Ravi Prakash: वैक्सीन पर राजनीति (कुंडलिया)
?????????
शुरू सियासत हो गई ,आई ज्यों वैक्सीन
कोरोना के दौर में ,बिल्कुल बुद्धि-विहीन
बिल्कुल बुद्धि-विहीन , हुई दलबंदी हावी
सत्ता से प्रतिपक्ष , कर रहा युद्ध प्रभावी
कहते रवि कविराय ,बुरी लगती है आदत
अन्वेषण पर आज ,गलत है शुरू सियासत
??????
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??????
सियासत = राजनीति
[07/01, 11:26 AM] Ravi Prakash: सुजान (कुंडलिया)
??????????
मिली सफलता बस उन्हें ,जो हैं लोग सुजान
मूरख को ठगते मिले , सब जाने – अनजान
सब जाने – अनजान , ज्ञान से तरती नौका
धोखेबाज जहान , ढूँढती रहती मौका
कहते रवि कविराय ,काम कौशल से चलता
जो हैं दुनियादार , उन्हीं को मिली सफलता
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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सुजान = चतुर , कुशल
जहान = दुनिया
[07/01, 1:20 PM] Ravi Prakash: मामूली आदमी (कुंडलिया)
?????????
मामूली खाते रहें, मामूली घर – द्वार
मामूली चलता रहे , अपना कारोबार
अपना कारोबार , स्वास्थ्य मामूली पाएँ
मामूली सम्मान , खुशी या गम सब आएँ
कहते रवि कविराय ,चढ़ाना कभी न सूली
कभी न चाहें स्वर्ग , प्रभो रखना मामूली
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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सूली पर चढ़ाना = फाँसी पर चढ़ाना ,अपार कष्ट देना
[08/01, 11:10 PM] Ravi Prakash: सिर के बाल (हास्य कुंडलिया)
?????????
बालों की वैरायटी , सिर के बाल कमाल
कुछ काले कुछ श्वेत हैं ,कुछ के दिखते लाल
कुछ के दिखते लाल ,बाल कुछ सीधे-सादे
कुछ में उलझन व्याप्त ,झाड़ियाँ जैसे लादे
कहते रवि कविराय ,बाल शोभा गालों की
रखिए बाल सँभाल , करें सेवा बालों की
☘️??????☘️
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[11/01, 10:33 PM] Ravi Prakash: कुल्हड़ वाली चाय (तीन हास्य कुंडलियाँ)
?????????
( 1 )
आती खुशबू मस्त है ,कुल्हड़ में जब चाय
साँसे जाती हैं महक ,दिल कहता है हाय !
दिल कहता है हाय ,काश ! रोजाना पी लें
नया चषक हर बार ,नए कुल्हड़ सँग जी लें
कहते रवि कविराय ,चाय जब कुल्हड़ पाती
बढ़ जाता आनंद , भले आधी ही आती
??☘️☘️( 2 )☘️☘️??
नखरे कुल्हड़ के बड़े , महँगी पड़ती चाय
इसमें पीते हैं वही , जिन की मोटी आय
जिनकी मोटी आय ,पिया फेंका बिसराया
कुल्हड़ ने सम्मान , टोकरी में बस पाया
कहते रवि कविराय ,दाम कुल्हड़ का अखरे
मन की रहती चाह , उठे पर कैसे नखरे
??☘️☘️( 3 )☘️☘️??
घर में कप में पी रहे , रोजाना ही चाय
मजबूरी में कौन सा ,इसके सिवा उपाय
इसके सिवा उपाय ,याद कुल्हड़ की आती
अहा ! महकती गंध ,चहकती क्या मस्ताती
कहते रवि कविराय ,काश कुल्हड़ हो कर में
मन में रहती चाह , चाय कुल्हड़ की घर में
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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कर में = हाथ में
चषक = चाय आदि पीने का पात्र
[11/01, 10:34 PM] Ravi Prakash: धरना-केंद्र (हास्य कुंडलिया)
??????
धरना – केंद्र बने हुए , सुंदर जैसे नीड़
तंबू ताने घूमती , सड़कों पर है भीड़
सड़कों पर है भीड़ ,मुफ्त में मिलता खाना
लोकतंत्र का अर्थ ,अराजकता तक जाना
कहते रवि कविराय ,न हालत अभी सुधरना
गुल खिलवाए और ,कौन जाने यह धरना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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नीड़ = आश्रय ,घर ,घोंसला
[14/01, 3:46 PM] Ravi Prakash: निर्धनता ( कुंडलिया )
✳️❇️✳️❇️✳️❇️
निर्धनता सबसे बड़ा , जग में है अभिशाप
किसने इज्जत से कहा ,निर्धन को श्री-आप
निर्धन को श्री – आप , लताड़ा हरदम जाता
रिश्तेदार न पास , कभी उसको बैठाता
कहते रवि कविराय , बैर सुख से है ठनता
जीवन का उपहास , उड़ाती नित निर्धनता
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[17/01, 12:39 PM] Ravi Prakash: प्राण – पखेरू (कुंडलिया)
???????
प्राण – पखेरू जानिए , जाते अपने नीड़
छोड़ – छाड़ चलते बने ,जग की सारी भीड़
जग की सारी भीड़ ,उड़े तो फिर कब आते
कर – कर के फिर याद ,मित्र-जन रोते जाते
कहते रवि कविराय , आत्म को रँगिए गेरू
सदा रहें तैयार , उड़ेंगे प्राण पखेरू
??????????
पखेरू = पक्षी चिड़िया
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[20/01, 10:35 AM] Ravi Prakash: घट (कुंडलिया)
?????
घट-घट वासी को को किया ,जिसने मन से याद
छूटा घट तो मोक्ष वह , पाता उसके बाद
पाता उसके बाद , कलुष मन के मिट जाते
आत्मा सब में एक , समझ कम ही यह पाते
कहते रवि कविराय , मृत्यु आ जाती चटपट
करते रहो प्रणाम , ब्रह्म जो वासी घट – घट
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घट = कलश ,घड़ा ,देह शरीर
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[21/01, 4:35 PM] Ravi Prakash: राम-नाम (कुंडलिया)
??????????
झुठलाओ चाहे भले ,सत्य एक बस राम
गूँजेगा यह ही सदा , अर्थी के सँग नाम
अर्थी के सँग नाम ,जगत से पार लगाता
चिंतन वह अभिराम ,राम का जो हो जाता
कहते रवि कविराय ,राम जी के गुण गाओ
कहो राम हैं सार , जगत थोथा झुठलाओ
??☘️?☘️?☘️???
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 75451
[21/01, 5:06 PM] Ravi Prakash: दुखी-संसार (कुंडलिया)
?????????
पाया जग दुख से भरा ,पाए अश्रु-प्रपात
बीमारी सबको लगी , तन पाता आघात
तन पाता आघात , बुढ़ापे के सब मारे
मरणासन्न शरीर , थके जीवन से हारे
कहते रवि कविराय ,एक दिन ढहती काया
हुई अंत में मृत्यु , चार कंधों पर पाया
?☘️????☘️???
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[25/01, 12:27 PM] Ravi Prakash: मुकदमा (कुंडलिया)
????????
जाता झगड़ा कोर्ट जब , लगते हैं सौ साल
चला मुकदमा मंद गति ,कछुए की ज्यों चाल
कछुए की ज्यों चाल ,सिर्फ तिथि पर तिथि पड़ती
बिना सजा के जेल , जिंदगी कुछ की सड़ती
कहते रवि कविराय , न्याय जल्दी कब आता
हुई अदालत व्यर्थ , रोज फरियादी जाता
??????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451
[25/01, 12:34 PM] Ravi Prakash: अंतिम यात्रा (कुंडलिया)
?????????
पहने कपड़े कीमती , रेडीमेड तमाम
धरे रहे सब एक दिन ,आए तनिक न काम
आए तनिक न काम , बिना साबुन नहलाते
दर्जी का क्या काम ,कफन बिन-सिला उढ़ाते
कहते रवि कविराय , उतर जाते सब गहने
अर्थी पर निष्प्राण , देह चलती बिन पहने
?????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[25/01, 2:34 PM] Ravi Prakash: जिजीविषा (कुंडलिया)
????????
जीने को प्रभु ने दिए ,सबको सौ – सौ साल
सुंदर भाव जिजीविषा , सुंदर रखिए ख्याल
सुंदर रखिए ख्याल , हास्य के मोती चुनिए
कभी निराशा हार , न अवसादों को चुनिए
कहते रवि कविराय , घूँट कड़वे पीने को
मिलें भले सौ बार , छोड़िए मत जीने को
☘️☘️☘️☘️??????
जिजीविषा = जीने की चाह
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[30/01, 11:17 AM] Ravi Prakash: नेता खुश हुआ (कुंडलिया)
☘️??☘️??☘️?
हो – हल्ला फिर मच रहा ,गूँजा शोर अनंत
चालू नेता खुश हुआ , आया लौट बसंत
आया लौट बसंत , अराजकता फिर आई
देते सुर में ताल , परस्पर धन्य बधाई
कहते रवि कविराय ,झाड़कर अपना पल्ला
जिम्मेदार – विहीन , मचाते हैं हो – हल्ला
?????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[30/01, 11:52 AM] Ravi Prakash: विपक्ष (कुंडलिया)
????????
देश – विरोधी कार्य को , देता धार विपक्ष
यह प्रवृत्ति क्या है उचित ,प्रश्न आज है यक्ष
प्रश्न आज है यक्ष , अराजकता भड़काना
हो – हल्ले के साथ , दोषियों को उकसाना
कहते रवि कविराय ,देश का जन-जन क्रोधी
पूछ रहा है देश , सहन क्यों देश – विरोधी
??????????
यक्ष – प्रश्न = महाभारत काल की प्रसिद्ध कथा जिसमें एक यक्ष ने पांडवों से कुछ कठिन प्रश्न पूछे थे
??????????
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[31/01, 10:43 AM] Ravi Prakash: गरल (कुंडलिया)
????????
पीना पड़ता है गरल , सबको सौ-सौ बार
अमृत केवल कल्पना , मरण सदा साकार
मरण सदा साकार ,कष्ट-दुख प्रतिदिन आते
यह जीवन-संगीत , जगत में जन सब पाते
कहते रवि कविराय ,कहाँ सुखमय है जीना
राजा हो या रंक , गरल पड़ता है पीना
?????????
गरल = विष, साँप का जहर
?????????
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[31/01, 12:08 PM] Ravi Prakash: पलटते बाजी आँसू (कुंडलिया)
????????
आँसू जग में मानिए ,सर्वोत्तम हथियार
इसके आगे फेल हैं , बंदूकें – तलवार
बंदूकें – तलवार , वही इस जग में भारी
रखता हरदम साथ ,आँसुओं की तैयारी
कहते रवि कविराय , उसी के आँसू धाँसू
निकले कभी-कभार ,पलटते बाजी आँसू
?☘️?☘️?☘️?☘️?
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[01/02, 9:27 AM] Ravi Prakash: साँझ (कुंडलिया)
✳️❇️????❇️✳️
किसका मन कब तक रहा ,चंचल हीरा – राँझ
ढलती सबकी ही सुबह ,आती सबकी साँझ
आती सबकी साँझ , देह बूढ़ी हो जाती
आँखें चलतीं मंद , साँस रह – रह सुस्ताती
कहते रवि कविराय ,लिखा युग जैसा जिसका
बीता – बीती बात ,एक – सा युग कब किसका
????????
साँझ = सूर्यास्त का समय ,शाम
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/02, 11:11 AM] Ravi Prakash: धनधाम ( हास्य कुंडलिया )
✳️❇️???❇️✳️
चाहत प्रभु जी है यही , सदा करें आराम
बिना किए कुछ काम ही ,बढ़े रोज धनधाम
बढ़े रोज धनधाम , फाड़कर छप्पर देना
लगे न उस पर टैक्स ,समूचे हर-हर लेना
कहते रवि कविराय , कमाने से दो राहत
सौ करोड़ बैलेंस , बैंक में हो यह चाहत
?????????
धनधाम = धन-दौलत और घर-बार
?????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/02, 11:47 AM] Ravi Prakash: दाँत ( कुंडलिया )
??????????
सोने से पहले करें , दाँतों को ब्रश रोज
परम पुरातन है मधुर ,अमृतमय यह खोज
अमृतमय यह खोज ,साफ दाँतों को रखते
पावन दिव्य सुगंध ,रात – भर सुंदर चखते
कहते रवि कविराय ,बचाओ यह खोने से
रखो दाँत मजबूत , रजत – जैसे सोने – से
?????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/02, 8:36 PM] Ravi Prakash: जीवन (कुंडलिया)
????????
जीना खुलकर चाहिए ,सबको ही स्वच्छंद
बोलो कब अच्छे लगे , किसे द्वार सब बंद
किसे द्वार सब बंद ,न खिड़की रोशनदानें
भीतर की आवाज , शत्रु जैसे सब जानें
कहते रवि कविराय ,घूँट क्या कड़वे पीना
जिओ ठीक उसी भाँति ,चाहते जैसे जीना
????????
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[03/02, 10:08 AM] Ravi Prakash: कतार (कुंडलिया)
?????????
जाने को जग से लगी , सबकी एक कतार
अपनी बारी जा रहे , सभी छोड़ घर-बार
सभी छोड़ घर-बार , सुनिश्चित सबको जाना
यही सनातन सत्य , सदा जाना – पहचाना
कहते रवि कविराय ,मरण-तिथि है आने को
बूढ़ा तन तैयार , किंतु है कब जाने को
कतार = पंक्ति ,क्रम ,सिलसिला
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[09/02, 10:19 AM] Ravi Prakash: मौजीराम (कुंडलिया)
??????????
सीधे – सादे कब जँचे , जँचते कुंचित केश
मजा गृहस्थी का वहीं , जिसमें किंचित क्लेश
जिसमें किंचित क्लेश ,गाल पर तिल इतराता
कुछ मीठा – नमकीन , धन्य जो चखता जाता
कहते रवि कविराय , रहो मत चिंता लादे
उत्तम मौजीराम , जी रहे सीधे – सादे
कुंचित = घुंघराले (बाल) ,छल्लेदार टेढ़ा ,घुमावदार
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[10/02, 1:11 PM] Ravi Prakash: कुटीर (कुंडलिया)
?????????
ढाबा कब ढाबा रहा ,अब यह रेस्टोरेंट
एसी वाले हो गए , महंगे – महंगे टेंट
महंगे – महंगे टेंट , बंगला कुटी कहाता
रखते नाम कुटीर , गिना महलों में जाता
कहते रवि कविराय ,नाम के हैं कुछ बाबा
चलता धंधा और , बोर्ड पर लिखते ढाबा
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[11/02, 11:04 AM] Ravi Prakash: कुटिल (कुंडलिया)
??????????
देते जग को कष्ट ही ,जिनका कुटिल स्वभाव
कैसे क्षति पहुँचे किसे ,रहता मन में चाव
रहता मन में चाव , जगत – दुख में सुख पाते
जितनी है सामर्थ्य , सभी को सिर्फ रुलाते
कहते रवि कविराय , मजे दुख देकर लेते
जब तक अंतिम साँस , दुष्ट पीड़ा बस देते
कुटिल = मन में कपट व द्वेष रखने वाला
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[11/02, 6:30 PM] Ravi Prakash: जीवन – मृत्यु (कुंडलिया)
????☘️????
होता ज्यों-ज्यों वृद्ध तन ,त्यों-त्यों दिखती मौत
जीवन से रिश्ता जुड़ा , लगता जैसे सौत
लगता जैसे सौत , मरण सच असली लगता
घर दुकान धन-धान्य ,सत्य जाना यह ठगता
कहते रवि कविराय , कभी हँसता मन रोता
क्या जीने का अर्थ , मृत्यु से क्या कुछ होता
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[11/02, 9:31 PM] Ravi Prakash: साकी (कुंडलिया)
??☘️???☘️??
गिनती के सबको मिले ,मस्ती के दिन चार
सोचो कितने जी चुके , लेकर खुशी अपार
लेकर खुशी अपार , बचे अब कितने बाकी
मदिरा कितनी शेष , जरा बतलाओ साकी
कहते रवि कविराय ,मौज सब ही की छिनती
साकी के पास हिसाब ,चषक बाकी की गिनती
साकी = मदिरालय में प्याला भर कर देने वाली
चषक = प्याला
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[12/02, 12:45 PM] Ravi Prakash: चित्र पुराना (कुंडलिया)
?????????
चित्र पुराना जब दिखा ,पहचाने जब लोग
कुछ तो थे जीवित अभी ,कुछ से हुआ वियोग
कुछ से हुआ वियोग ,चित्र बन कर रह जाते
कल तक जिनके साथ ,बोलते हँसते – गाते
कहते रवि कविराय ,जगत से आना – जाना
समझाता चिर – सत्य , एक बस चित्र पुराना
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[14/02, 1:18 PM] Ravi Prakash: पैसा (हास्य कुंडलिया)
??????????
पैसा जिस पर आ गया , उसकी ऊँची नाक
पैसा अब जिस पर नहीं ,उसकी इज्जत खाक
उसकी इज्जत खाक , जगत मनुहार लगाता
पुष्प – हार सम्मान , खींच कर पैसा लाता
कहते रवि कविराय , भले हो चाहे जैसा
मुख्य – अतिथि अध्यक्ष ,पास में जिसके पैसा
?????????
मनुहार = रूठे व्यक्ति को मनाने के लिए की जाने वाली मीठी बातें ,खुशामद
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[21/02, 8:53 AM] Ravi Prakash: क्षोभ (कुंडलिया)
?????????
आता तो है दो घड़ी ,मन में पापी लोभ
युगों-युगों परिणाम है ,इसका भारी क्षोभ
इसका भारी क्षोभ ,हृदय में जन पछताते
घोर नर्क की आग ,भीतरी हर क्षण पाते
कहते रवि कविराय ,दुखी मन हो-हो जाता
साँस-साँस में अश्रु ,निकल बाहर को आता
क्षोभ = व्याकुलता ,पछतावा
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[22/02, 12:36 PM] Ravi Prakash: पिता-पुत्र विश्वास (कुंडलिया )
?????????
नाता है सबसे बड़ा , पिता -पुत्र विश्वास
रिश्ते तो जग में कई ,रिश्ता यह है खास
रिश्ता यह है खास ,मृत्यु से कब घबराया
साए की ले आस , पार खाई से आया
कहते रवि कविराय ,धन्य जो इसको पाता
अद्भुत दिव्य महान ,जनक – सुत का है नाता
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[23/02, 9:16 AM] Ravi Prakash: निरापद (कुंडलिया)
?????????
आते संकट रात – दिन ,जीवन में अविराम
कौन निरापद रह सका ,मिला किसे आराम
मिला किसे आराम ,सदा ही चिंता खाती
एक मुसीबत बाद , दूसरी दौड़ी आती
कहते रवि कविराय , कन्हैया पार लगाते
डूबी कभी न नाव , खिवैया बनकर आते
निरापद = जिसमें कोई संकट या आपत्ति न हो ,सुरक्षित
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[24/02, 10:29 AM] Ravi Prakash: बटोही (कुंडलिया)
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चला बटोही छोड़कर ,अपनी गली-मकान
उसकी केवल रह गई ,यादों में मुस्कान
यादों में मुस्कान ,अजाने पथ पर जाता
जाने कैसे लोग ,नया किस से हो नाता
कहते रवि कविराय ,सदा से है निर्मोही
सब को रोता छोड़ ,विदा हो चला बटोही
बटोही = यात्री ,पथिक ,रास्ते पर चलने वाला
निर्मोही = जिसको कोई मोह न हो
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[24/02, 11:43 AM] Ravi Prakash: एकाकी (कुंडलिया)
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एकाकी आया मनुज , एकाकी प्रस्थान
आया है किस लोक से ,अगला पथ अनजान
अगला पथ अनजान ,धरा पर खेला – खाया
यहीं मिले सौ मित्र , बंधु – बांधव को पाया
कहते रवि कविराय ,रंग रहते कब बाकी
अंतकाल का दौर , आदमी फिर एकाकी
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[24/02, 12:48 PM] Ravi Prakash: घर में दो लाचार (कुंडलिया)
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बेटे जाकर बस गए ,घर से दूर अपार
अब बूढ़े माँ-बाप हैं ,घर में दो लाचार
घर में दो लाचार ,साँस बाकी हैं गिनते
हारे थके निढ़ाल ,देखते खुशियाँ छिनते
कहते रवि कविराय ,उठे बैठे या लेटे
गुमसुम हो दिन-रात , याद करते हैं बेटे
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[25/02, 11:04 AM] Ravi Prakash: मर्त्य ( कुंडलिया )
??????????
रोजाना आता रहा , सिर्फ बीच में बाल
डँसने को तैयार था ,वरना हर दिन काल
वरना हर दिन काल ,गलतियाँ होतीं भारी
प्रभु की कृपा अपार ,मर्त्य-मानव आभारी
कहते रवि कविराय ,काल को सबको खाना
रखो हमेशा याद , मृत्यु का सच रोजाना
मर्त्य = मानव ,शरीर ,मरणशील
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[25/02, 8:38 PM] Ravi Prakash: सत्य (कुंडलिया)
??????????
सहना सीखो कष्ट को , खाना रोटी – दाल
जो जीवन दुख में जिया ,उसने किया कमाल
उसने किया कमाल , उच्च मूल्यों को जीता
सच का यही इनाम , जिंदगी – भर विष पीता
कहते रवि कविराय , बीच भँवरों में रहना
पड़ी वक्त की मार , थपेड़े सच को सहना
??????????
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[26/02, 11:06 AM] Ravi Prakash: सत्य (कुंडलिया)
???????????
सहना सीखो कष्ट को , खाना रोटी – दाल
जो जीवन दुख में जिया ,उसने किया कमाल
उसने किया कमाल , उच्च मूल्यों को जीता
सच का यही इनाम ,जिंदगी – भर विष पीता
कहते रवि कविराय ,आत्म – गौरव है गहना
स्वाभिमान में मस्त , हमेशा दुर्दिन सहना
??????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[27/02, 7:37 PM] Ravi Prakash: ईश की लीला (कुंडलिया)
???????
कोई विपदा क्या बड़ी ,बड़ा जगत का खेल
व्यूह रचा भगवान का , चाहे जैसा झेल
चाहे जैसा झेल , कृष्ण हैं लीलाधारी
सारे घटना – चक्र , ईश की लीला प्यारी
कहते रवि कविराय , साँस चहकी या रोई
सब हैं एक समान , फर्क इनमें कब कोई
रचयिता : रविप्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[27/02, 7:45 PM] Ravi Prakash: फटमारा (कुंडलिया)
☘️?☘️?☘️?☘️?☘️
फटमारा – सा ही रहा ,सब का अंतिम दौर
नवयौवन का और था ,वृद्ध आयु का और
वृद्ध आयु का और , सभी को रोक सताते
कुछ घर से लाचार , दुखी धन से हो जाते
कहते रवि कविराय ,एक-सा यह जग सारा
कोई मुट्ठी बंद , खुला कोई फटमारा
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फटमारा = कृषकाय ,दुखी ,उपेक्षित
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[28/02, 10:00 AM] Ravi Prakash: विलाप (कुंडलिया)
??????????
पाए जाते छोर दो , हर्षोल्लास – विलाप
इन दो का ही कर रहा ,बिना रुके जग जाप
बिना रुके जग जाप , विधाता कभी रुलाता
कभी दे रहा मोद , मौज इंसान मनाता
कहते रवि कविराय , रात – दिन जैसे आए
जन्म-मृत्यु का चक्र , मनुज ने दोनों पाए
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विलाप = किसी की मृत्यु पर होने वाला
शोक या दुख ,प्रकट किया जाने वाला दुख
मोद =खुशी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[01/03, 3:07 PM] Ravi Prakash: पतझड़ (कुंडलिया)
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पतझड़ तेरी वंदना , तेरी जय – जयकार
तू नव – यौवन दे रहा , तेरा शत आभार
तेरा शत आभार , मृत्यु उत्सव बन जाता
गिरा पेड़ से पत्र , जन्म नूतन ले आता
कहते रवि कविराय,न समझो इसको गड़बड़
लाता सुखद वसंत , धन्य है पावन पतझड़
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[02/03, 11:02 AM] Ravi Prakash: पहर (कुंडलिया)
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होते हैं दिन-रात में , पहर आठ या याम
लगभग घंटे तीन हैं ,इनका मतलब आम
इनका मतलब आम ,दोपहर अब भी चलता
दिन का चौथा याम ,शाम जब दिन है ढलता
कहते रवि कविराय ,शब्द कब मतलब खोते
सूर्योदय – सूर्यास्त , चार पहरों में होते
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पहर = रात-दिन (24 घंटे) का आठवां भाग, लगभग 3 घंटे ,समय, काल
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[02/03, 3:02 PM] Ravi Prakash: दादाजी (कुंडलिया)
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ज्यादा सोचा मत करो ,हल्के में लो बात
वरना दिल पर होएगा ,भीषण कुछ आघात
भीषण कुछ आघात ,सहज मुस्काना सीखो
कठिनाई के बीच , दाँत दिखलाते दीखो
कहते रवि कविराय , भले हो जाओ दादा
बच्चा रहना ठीक ,फिक्र मत करना ज्यादा
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[02/03, 8:28 PM] Ravi Prakash: आँखें और मोबाइल (कुंडलिया)
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सबकी आँखें खा रहीं ,मोबाइल से मात
लाइक और कमेंट से ,होती दिन-भर बात
होती दिन-भर बात ,वीडियो सौ-सौ चलते
आँखें दो से डेढ़ , हो गईं ढलते – ढलते
कहते रवि कविराय ,गई है सेहत कब की
सूखी – सूखी आँख ,दीखती रोगी सबकी
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[06/03, 11:18 AM] Ravi Prakash: मनुज रूप में देव (कुंडलिया)
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सोते – उठते – जागते , पाते परमानंद
जिनके मुख पर है सदा ,मधु मुस्कान अमंद
मधु मुस्कान अमंद ,सदा सबका हित गाते
लेश – मात्र भी क्रोध , न भीतर जिनके पाते
कहते रवि कविराय ,.धन्य दुर्लभ जन होते
मनुज रूप में देव , धरा पर खाते – सोते
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[06/03, 11:30 AM] Ravi Prakash: निर्धन और धनवान (कुंडलिया)
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निर्धन रोगी को कहो ,मनुज स्वस्थ धनवान
मुर्दा होते हैं भवन , जिंदा है इंसान
जिंदा है इंसान , प्रेम की डोर सुनहरी
शीतल होता चाँद , छाप होती पर गहरी
कहते रवि कविराय ,मिले जिससे अपनापन
उसको रखना याद , नहीं होगे फिर निर्धन
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[09/03, 11:45 AM] Ravi Prakash: जीवित की पहचान (कुंडलिया)
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ज्वाला भरते देह में , श्री संपन्न महान
मौन कहाँ जग में रहे , जो प्रगल्भ इंसान
जो प्रगल्भ इंसान , प्रश्न नित पूछा करते
सम्मुख भले पहाड़ , नहीं चढ़ने से डरते
कहते रवि कविराय , रंग हो गोरा-काला
जीवित की पहचान ,अंक में जिसके ज्वाला
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प्रगल्भ = वाचाल ,निडर ,चतुर
अंक = आलिंगन करना
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[10/03, 1:17 PM] Ravi Prakash: व्यथा (कुंडलिया)
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कोई रहती है व्यथा , कोई सबको कष्ट
दुर्दिन कब सबके हुए , पूरी तरह विनष्ट
पूरी तरह विनष्ट , सभी को चिंता खाती
नई समस्या एक ,रोज सबके घर आती
कहते रवि कविराय ,वस्तु प्रिय सबने खोई
दुखी जगत में लोग , रोग सबको है कोई
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व्यथा = दुख ,चिंता ,कष्ट पीड़ा ,वेदना
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[16/03, 3:26 PM] Ravi Prakash: बुढ़ापा (कुंडलिया)
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ढोना पड़ता देह को , बूढ़ा तन लाचार
गाड़ी खिंचना कब सरल ,पिचहत्तर के पार
पिचहत्तर के पार , साठ से होता ढीला
जैसे सूखा पेड़ , पेड़ का पत्ता पीला
कहते रवि कविराय , बुढ़ापा मतलब रोना
भारी लगती साँस , बोझ लगता है ढोना
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[17/03, 9:55 AM] Ravi Prakash: मौत (कुंडलिया)
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जग में सबके घर हुए ,कभी शोक-संतप्त
कौन यहाँ रहता सुखी ,खुशियों ही में तृप्त
खुशियों ही में तृप्त ,मौत सब के घर आती
मानव है निरूपाय ,भूख यम की खा जाती
कहते रवि कविराय ,मृत्यु बढ़ कर दो डग में
लेती देह दबोच , न बचता कोई जग में
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संतप्त = अच्छी तरह से खूब तपा हुआ ,परम दुखी
जग = संसार
डग = कदम
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[17/03, 10:48 PM] Ravi Prakash: तन में बंदी कौन (कुंडलिया)
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भागे दुनिया हर कहीं ,गली देस परदेस
दौड़े जग में इस तरह ,जैसे घोड़ा रेस
जैसे घोड़ा रेस ,न भीतर लेकिन झाँका
तन में बंदी कौन ,ठहर थोड़ा कब आँका
कहते रवि कविराय ,अधमुँदे रहे न जागे
फुर्सत मिली न एक ,अनवरत दौड़े-भागे
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[17/03, 10:58 PM] Ravi Prakash: पीछे-पीछे मौत (कुंडलिया)
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आगे – पीछे हैं लगे , सब लाइन में लोग
कोई पहले जा चुका ,सुख-दुख सारे भोग
सुख-दुख सारे भोग ,किसी को रुककर जाना
चला अनवरत चक्र ,समय जो लिखा बिताना
कहते रवि कविराय , मनुज हैं सभी अभागे
पीछे – पीछे मौत , जिंदगी आगे – आगे
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[18/03, 8:25 AM] Ravi Prakash: बुढ़ापा (कुंडलिया)
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भरते मुख में लाड़ जो ,देते अपना प्यार
विमुख बुढ़ापे में दिखा ,उनको ही परिवार
उनको ही परिवार , अकेलापन है खाता
वृद्धाश्रम में दौर ,आखिरी किसको भाता
कहते रवि कविराय ,समय से पहले मरते
चुक जाता उत्साह ,साँस की किस्तें भरते
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विमुख = उदासीन ,जिसने मुख मोड़ लिया हो
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[19/03, 11:03 AM] Ravi Prakash: मन में राम (कुंडलिया)
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आँकें कपड़ों से नहीं ,किसका शुभ्र विचार
अक्सर कपड़े रँग लिए ,उच्छृंखल व्यवहार
उच्छृंखल व्यवहार ,ध्यान कपड़े कब आते
जिनके मन में राम , दुपट्टा कब रँगवाते
कहते रवि कविराय , हृदय में अपने झाँकें
देखें खुद को आप , करें मूल्यांकन आँकें
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[20/03, 12:18 PM] Ravi Prakash: खाती सबको मौत (कुंडलिया)
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आती है सब के यहाँ ,खाती सबको मौत
रखती सबसे शत्रुता ,जीवन की यह सौत
जीवन की यह सौत ,बुढ़ापा इससे डरता
बच्चे और जवान , प्राण सबके यह हरता
कहते रवि कविराय ,उदासी छा-छा जाती
जिस घर आती मौत , रुलाई केवल आती
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[20/03, 8:02 PM] Ravi Prakash: बहाने कैसे – कैसे (कुंडलिया)
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वैसे तो सबको मिले , जीने के सौ साल
लेकिन कब किसको पता ,खाए आकर काल
खाए आकर काल ,आयु कब देखा करता
जिस पर पड़ी कुदृष्टि , वही तत्क्षण है मरता
कहते रवि कविराय , बहाने कैसे – कैसे
ऐसे कोई मृत्यु , मृत्यु है कोई वैसे
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[26/03, 10:45 AM] Ravi Prakash: दूर से कहिए होली (कुंडलिया)
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होली पर दीखे जहाँ ,प्रिय के गोरे गाल
प्रेमी- मन कहने लगा ,रँग दे आज गुलाल
रँग दे आज गुलाल ,आज परिपाटी प्यारी
तभी ढक लिया मास्क ,मुई ने लेकर भारी
कहते रवि कविराय ,चतुर नारी फिर बोली
दो गज रखिए दूर , दूर से कहिए होली
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[26/03, 4:37 PM] Ravi Prakash: साठ वर्ष की आयु ( कुंडलिया )
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साठ बरस की उम्र है , जीना चालिस और
किसे पता इस बीच में , आएँ कितने दौर
आएँ कितने दौर , बुढ़ापा रंग दिखाए
बीमारी से जंग , जीत पाए ना पाए
कहते रवि कविराय ,नियति कब किस के बस की
कुछ को मिलती उम्र ,भाग्य से साठ बरस की
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[27/03, 3:05 PM] Ravi Prakash: होली – मिलन – मिलाप (कुंडलिया)
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होली पर फिर आ गया , कोरोना चुपचाप
कैसे अब किस भाँति हो ,होली-मिलन-मिलाप
होली – मिलन – मिलाप , रखें दो गज की दूरी
फिर कैसे हो बंधु ,साध मिलने की पूरी
कहते रवि कविराय ,करो सब हँसी – ठिठोली
खुद पर डालो रंग , कहो खुद से शुभ होली
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[27/03, 7:15 PM] Ravi Prakash: होली के समय कोरोना (कुंडलिया)
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आता उत्सव चुलबुला , एक साल में एक
करें प्रतीक्षा सर्वजन , शहर – गाँव प्रत्येक
शहर – गाँव प्रत्येक ,रोग अति घातक आया
पिचकारी रँग छोड़ , विश्व जिससे थर्राया
कहते रवि कविराय , बहुत जी है घबराता
होली ही के वक्त , मुआ कोरोना आता
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[28/03, 11:34 AM] Ravi Prakash: होली के रंग,कोरोना के संग (कुंडलिया)
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होली तो आई मगर , कोरोना के साथ
गले लगाने से बचो ,छूना तनिक न हाथ
छूना तनिक न हाथ ,नहीं कोरोना लाना
अच्छी यह तरकीब ,नैन से नैन लड़ाना
कहते रवि कविराय ,भले हो सँग में टोली
रहना छह फिट दूर ,मनाओ ऐसे होली
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[30/03, 10:00 AM] Ravi Prakash: दो मीत (कुंडलिया)
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चलते जीवन में मधुर ,लिए हास दो मीत
उड़ते नभ में दूर तक , गाते सुंदर गीत
गाते सुंदर गीत , देह दो एक कहाते
डाल हाथ में हाथ , गृहस्थी सुखद बसाते
कहते रवि कविराय ,हाथ रह जाते मलते
डँस लेता जब काल ,एक को चलते-चलते
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मीत = मित्र,साथी ,दोस्त
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[30/03, 5:04 PM] Ravi Prakash: मिलना गले – मिलाप (कुंडलिया)
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परिपाटी जाती रही ,मिलना गले – मिलाप
कोरोना का लग गया ,इनको घातक शाप
इनको घातक शाप , लोग मिलते कतराते
पहने मुख पर मास्क ,दूर छह फुट रुक जाते
कहते रवि कविराय , पतँग सुत्तल से काटी
मिलना – जुलना बंद , भूलिएगा परिपाटी
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[01/04, 10:11 AM] Ravi Prakash: देह (कुंडलिया)
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रहती है किसकी सदा ,मरती मानव-देह
एक दिवस मिट जाएगी ,करो न इससे नेह
करो न इससे नेह ,जिंदगी सौ वर्षों की
यही अधिकतम आयु ,मिली है उत्कर्षों की
कहते रवि कविराय ,समय की धारा बहती
गए त्याग सब देह ,कीर्ति यश – गाथा रहती
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देह = शरीर ,तन ,काया
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[03/04, 2:34 PM] Ravi Prakash: दुष्ट (कुंडलिया)
??????
मारा जाता सर्वदा , जिसका दुष्ट स्वभाव
डंक हमेशा मारना , डँसने का नित चाव
डँसने का नित चाव ,सभी को दुख पहुंचाता
मिलना ज्यों अभिशाप ,कष्टप्रद जाना जाता
कहते रवि कविराय , मारता है जग सारा
लाठी जूता शस्त्र , सभी ने लेकर मारा
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[04/04, 9:40 AM] Ravi Prakash: जगत यह किसकी रचना (कुंडलिया)
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रचना किसकी है जगत ,अस्ति-नास्ति का भाव
इसी प्रश्न पर है सदा ,जग का रहता चाव
जग का रहता चाव , ईश को किसने देखा
निराकार वह ब्रह्म , ज्ञान की अंतिम रेखा
कहते रवि कविराय , विज्ञ कब चाहें बचना
रहते हर दिन खोज ,जगत यह किसकी रचना
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अस्ति = है ,विद्यमानता
नास्ति = नहीं है ,अविद्यमानता
विज्ञ = समझदार और पढ़े लिखे ,विद्वान, जानने वाले
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[04/04, 8:07 PM] Ravi Prakash: मृत्यु (कुंडलिया)
????????
जाना जग से कब भला , पाया कोई रोक
जाने का होता रहा ,हृदय विदारक शोक
हृदय विदारक शोक , अश्रु जाना सुन आते
जीवन के सब चित्र , एक माला बन जाते
कहते रवि कविराय ,जन्म ले जिसको आना
एक दिवस फिर मृत्यु , व्योम में छुप-छुप जाना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[05/04, 1:03 PM] Ravi Prakash: नीर (कुंडलिया)
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करते प्रियजन जब विदा ,भर-भर आता नीर
संबंधी क्या मित्र क्या , होते सभी अधीर
होते सभी अधीर , फूटकर दिखते रोते
जिनको प्रीति विशेष ,भीतरी सुध-बुध खोते
कहते रवि कविराय ,लोग जाने क्यों मरते
क्यों निर्मम भगवान ,पाश क्यों बांधा करते
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नीर = जल ,पानी
पाश = बंधन ,बांधने का यंत्र
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[05/04, 2:00 PM] Ravi Prakash: देह ( कुंडलिया )
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रोई आत्मा सोच के ,खोनी पड़ती देह
नियम पुरातन है यही ,तन से कैसा नेह
तन से कैसा नेह ,देह नश्वर सब पाते
इससे करते प्रीति ,संग में हँसते – गाते
कहते रवि कविराय ,एक दिन ऐसी सोई
चिर निद्रा में लीन , देख फिर दुनिया रोई
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[06/04, 1:06 PM] Ravi Prakash: आया फिर से लौटकर (कुंडलिया)
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आया फिर से लौटकर ,अति घातक अभिशाप
लोगों को डँसने लगा , कोरोना चुपचाप
कोरोना चुपचाप , रुका फिर मिलना – जुलना
बंद लोक – व्यवहार , बंद विद्यालय – खुलना
कहते रवि कविराय , हुआ हर व्यक्ति पराया
डर लगता है कौन , संग कोरोना आया
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[06/04, 4:23 PM] Ravi Prakash: वोटरों से अपील ( हास्य कुंडलिया )
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कहना मास्क लगाइए ,रहिए छह फिट दूर
गरज तुम्हारी है पड़ी , नेता तुम मजबूर
नेता तुम मजबूर ,नाक छिलने तक रगड़ो
किसका होगा वोट ,सभी प्रत्याशी झगड़ो
कहते रवि कविराय ,पड़ेगा उनको सहना
चार दिवस लो मौज ,वोटरों यह ही कहना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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