23 वीं वर्षगांठ
दीपक बाति बनकर हम तुम घर -मन्दिर को प्रकाशित करेंगे।
तुम दीपक में प्रेम का घृत बन,बाति बन मैँ समर्पण करेंगे।
जब तक स्नेह का घृत है दीए में तब तक मैं बाति भी खुश हो जलूँगी।
मेरे मन-मन्दिर के हो तुम आराध्य।
बनके पुजारिन आराधना करूंगी।
दोनों हैं मेरे जो लड्डू गोपाल
निस-दिन मैं उनकी सेवा करूंगी।
तुम बनना बादल पवन मैं बनूँगी।
मेरे घर उपवन मे स्नेह की वर्षा सतत हम करेंगे।
करके विचारों का चिंतन मनन सदा सही पथ हम चुनेंगे।
मेरे देव रेखा की सांसों में तुम हो।
तेरे साथ प्यारा सफर तय करेंगे