22. *कितना आसान है*
कितना आसान है कहना कि खुश रहो,
लेकिन नामुमकिन भी तो नहीं…
गमों को भुला देना।
कितना आसान है कहना कि भूल जाओ…
वो सब जो बीत गया।
पर असंभव है बहुत सी बातों को…
दिल से जुदा करना।
कितना आसान है कहना कि…
माफ भी कर दो अब,
लेकिन कैसे भूल सकता है कोई…
किसी के कारण पल-पल खून के घूट पीना।
कितना आसान है कहना कि…
मत देखो पलट कर बुरे मंजर को,
लेकिन नामुमकिन है …
जख्मों के निशान मिट जाना।
कितना आसान है कहना कि…
बढ़ भी जाओ आगे,
लेकिन मुश्किल है बहुत…
पांवों में पड़े छालों संग आगे बढ़ जाना।
कितना आसान है कहना कि…..
सहन करो,
लेकिन कितना मुश्किल है सुर्ख अंगारों पर चलते जाना।
धुमिल होने लगते कुछ गम…
वक़्त की रफ़्तार से गर,
लेकिन दोषी को सामने देख ‘मधु’…
लाजमी है जख्मों का हरे हो जाना।