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जल उठा तन मन हमारा रँग गुलाबी देख कर
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खिल गया है मुख हमारा खत जवाबी देख कर,
शब्द हर मन को छुआ है हल किताबी देख कर।
मच गया तूफान दिल में जो बदन तेरा छुआ,
जल उठा तन मन कुँवारा रँग गुलाबी देख कर।
क्या कहूँ कोई रहम आये न तुझको याद कर,
छा गया जादू नशा तेवर शराबी देख कर।
जब सुना हमने कहीं पर बात मुश्किल है बड़ी,
बात कैसे कब करूँ रुतबा हिसाबी देख कर।
रात लंबी है बड़ी कटती नहीं है जाग कर,
चैन आता ही नहीं हल चल नवाबी देख कर।
हर घड़ी हर शाम मनसीरत न मिलता आसरा,
डर लगे हर पल पहर करतब कबाबी देख कर।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)