2017 की शर्दी
2017 की शर्दी : कुछ दोहे
// दिनेश एल० “जैहिंद”
खूब जमाई ठण्ड भी, अबकी अपनी धाक ।
सारी ढिठई ढह गई….बहती सबकी नाक ।।
तेरा नहीं जवाब है, वाह ! वाह !! रे ठण्ड ।
अभिमानी सारे छिपे, चकना चूर घमण्ड ।।
गैस,बिजली व कोयले,कितने स्वाहा काठ ।
अब की हमें पढ़ा गई, शीत रितु नया पाठ ।।
बेमौसम का मेघ भी, बदले अपना रूप !
थरथर काँपे लोग सब, रंक होय या भूप !!
छाई छाँव धूप कहीं, मौसम खेले खेल ।
ऐसी करिश्मा रितु की, सूरज बेचे तेल ।।
बेमौसम के मार से, माथ पीटे किसान !
थाली में रोटी नहीं, घर को नहीं पिसान !!
शीत रितु निराली बड़ी, सबकी लेती खैर !
ना दोस्ती हो काहुँ से, नाहिं काहुँ से बैर !!
आँखमिचौली सूर्य की, मन को नहीं सुहाय ।
देख भानु-बर्ताव ये, मनुवा कुढ़-कुढ़ जाय ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
27. 02. 2018