20. *कैसे- कैसे रिश्तें*
कौन कहता है—
‘खून के रिश्ते’ ही “रिश्तें” होतें हैं!
बहुत से ‘अपने’ ना होकर भी—
“अपने” ही होते हैं!
जो ‘बिन कहे’ “बातें” समझते हैं—
वो “दिल” से ‘रिश्तें’होतें हैं!
जो ‘बिन बोले’ “चेहरे” से—
बिन ‘देखें’ “आवाज” से—
“हाल- ऐ – दिल” जान लेते है!
ऐसे रिश्तें किसी ‘नाम’ के—
“मोहताज़” नहीं होते हैं!
कुछ ‘अपने ना’ होकर भी–
“ताउम्र” साथ निभातें हैं —
कुछ ऐसे भी “बेनाम”—
“एहसासों” के रिश्तें होतें हैं!
कौन कहता है ‘मधु’—
‘खून’ के रिश्तें ही “रिश्तें” होते हैं!